Tuesday 10 November 2015

A-177 मेरे आने से -10.11.15—5.48 AM

A-177 मेरे आने से -10.11.15—5.48 AM
मेरे आने से जो यह सवाल हो गया है
ऐसा क्या किया जो बवाल हो गया है

यही सोच सोच कर आगे बढ़ रहा हूँ 
हर बात पर अडिग यूँ ही अड़ रहा हूँ 

सुनना समझना बहुत दूर की कथा है 
मैं तो अपनी भाषा में ही उलझ रहा हूँ 

जिंदगी की सच्चाई से कोसों दूर कहीं
भ्रमित होकर मैं सबकुछ समझ रहा हूँ 

मैं नहीं था तब भी दुनिया चल रही थी
जब चल रही है तो अब क्यों डर रहा हूँ 

हमारे रुख़्सत होने पर भी चलती रहेगी 
फिर मरने से पूर्व ही मैं क्यों मर रहा हूँ 

ऐसा लगता है कि अकेला रह गया हूँ
सोने के सिल्ली के संग मैं बह गया हूँ 

बिना माया किसी का गुजारा नहीं है
माया जो नहीं तो कोई हमारा नहीं है 

मैं ऐसे ही झूठ की संगत में जी रहा हूँ 
कभी मीठे व् कभी कड़वे घूँट पी रहा हूँ 

शुक्र है उनका जिन्होंने मुझको पाला है
ऋणी हूँ उनका जिन्होंने मुझे संभाला है

आभारी हूँ उनका जो मुझे सहते आये हैं
नहीं चाहते हुए भी मेरे संग रहते आये हैं

माफ़ी चाहता हूँ जो मुझे सुनते आये हैं
मन रिश्ते तोड़ता रहा वह बुनते आये हैं

मसला जो उठा था वो मेरे सम्मान का 
आज अहसास हुआ उनके एहसान का 

आज मैं नहीं हूँ तो सब कुछ मेरे पास है
जीने का अहसास हुआ अब बिन्दास है


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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Saturday 7 November 2015

A-042 अँधेरे को सूरज की रौशनी रास आ गयी -8.8.15--10.06 AM

अँधेरे को सूरज की रौशनी रास आ गयी
रात खिसकी थी और थोड़ी पास आ गयी
समा ही गयी धीरे धीरे उसके आगोश में
ज़ज्ब हुई जाती थी फिर भी रही होश में

रात धीरे धीरे ज्यों ज्यों आगे बढ़ने लगी
सूरज की रौशनी भी थोड़ी चमकने लगी
हुआ जो मिलन वो गजब का नज़ारा था
छोटी सी नारंगी और आसमान सारा था

हमने आसमान को यूँ झुकते हुए देखा है
कहीं दूर समंदर पर पड़ी सुनहरी रेखा है
रेखा और समंदर के बीच मझधार पर
नन्हा सा सूरज बैठा सपना साकार कर

एक नई सुबह एक नई उम्मीद के संग
एक नन्ही सी किरन नयी रौशनी के संग
एक नया मंझर एक नए नज़ारे के संग
उठी है एक नई लहर नए नगारे के संग

सारा जहाँ बना एक एक रौशन नज़ारा है
समंदर की लहरों को मिला एक सहारा है
हर पल गिरती और हर फिर सम्हलती हैं
न है गिला न शिकवा न कोई किनारा है

जिंदगी हमारी भी यूँ ही मुकम्मल होती है
हर नया दिन और हर रात भी नई होती है
बिसरे विचारों को छोड़ आगे बढ़ के देख
मुकद्दर का इजहार नयी शुरुयात होती है ……नयी शुरुयात होती है

Poet: Amrit Pal Singh Gogia