Friday 29 June 2018

A-378 तेरे ख़ुशी 22.6.18-7.30 AM

A-378 तेरे ख़ुशी 22.6.18-7.30 AM 


तेरी ख़ुशी और तेरा दुख दोनों सताते हैं 
हम इस बात को समझ भी नहीं पाते हैं 

तू खुश होती है तो मुझे जलन होती है 
तुम्हें दुखी देखकर ग़मगीन हो जाते हैं
कैसी हया है कि जिसका पर्दा नहीं है 
पर्दे में रहो तुम हम भी रहना चाहते हैं 

तुम्हें देखने को जब भी तरसता है दिल 
हम तो पर्दे में ही थोड़ी ख़बर चाहते हैं 
बिना पर्दे के जो दिखे वो पुख़्ता नहीं है 
अपने लोग ही हैं अपनी ख़बरें उड़ाते हैं 

हम तो पागलों की तरह मँडरा रहे होते 
हमें देखकर तो अपने ही भड़क जाते हैं 
कैसे क़िस्सा करें तुम्हारा बारे कोई भी 
लोग सुनते बाद में पहले ख़ार खाते हैं 

नहीं फ़ितरत है हम तेरी चुग़लियाँ करें
यहाँ हम खुद को बहुत बेबस पाते हैं 
लोगों को पहले से पता है बहुत कुछ 
मुझसे पहले हर बात वो ही बताते हैं 

नयन शराबी नुकीली भवों का जादू 
इनको हम पर्दे में ही देखना चाहते हैं 
लोगों की नज़र जब इनपर पड़ने लगे 
नहीं चाहकर भी हम थोड़े डर जाते हैं 

जब तू आँखें फेर लेती हो मुझसे कभी 
हम अपनी नज़रों में स्वयं गिर जाते हैं 
बहुत मलीन स्थिति होती है तब हमारी 
हम स्वयं ख़ुद से ख़ुद को ज़ुदा पाते हैं 

गुज़रता एक पल भी नहीं तेरी जुदाई में 
हम स्वयं अकेले भला कहाँ रह पाते हैं 
तेरी ही यादों में हर पल बीत रहा मेरा 
ज़ुदा होकर वही पल मुझे ही सताते हैं 

शुक्र है कि जुदाई मिलन का ज़रिया है 
इसी बहाने तुमसे पुनः मिल तो पाते हैं 
लोग साथ रहकर भी साथ रहते नहीं हैं 
जुदा होकर भी हम प्यार से भर जाते हैं 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Saturday 16 June 2018

A-377 ख़बर 17.6.18--5.49 AM

A-377 ख़बर 17.6.18--5.49 AM 


ख़बर चली आये तो ख़बर मिल जाती है 
मामूली सी ख़बर भी अब बहुत सुहाती है 
हर पल इन्तज़ार रहता तेरी ही ख़बर का 
तेरी ख़बर ऐसे जैसे ज़िंदगी की बाती है 

एक पल भी नहीं रहा जाता तेरी जुदाई में 
ढूँढता रहता हूँ मैं तुझको तेरी ही खुदाई में 
सारी ख़लकत भी तब लगे मुझे छोटी सी 
मिल जाते हैं जब कुछ पल तेरी बड़ाई में 

कौन कहता है कि तू एक इन्सान नहीं है 
इन्सान हैं मग़र फ़रिश्तों का जहां नहीं है 
झूठी माया से लिप्त रहे जहाँ सारा जहां 
उसी झूठे लोक में दिखी क्या माँ नहीं है 

तब भी न दिखे तुमको तो लानत है तुझे 
एक ऐसा जीव सबसे मन भावन है मुझे 
शिशु न छोड़े माँ बेशक उसे संसार दे दो 
कुछ नहीं चाहिए उसे माँ का प्यार दे दो 

मातृत्व में ख़ुदा खुद जैसे शरीक़ हुआ है 
लाड़ के आगे तो खुद भी बारीक़ हुआ है 
न रची उसने इससे ख़ूबसूरत काया कोई 
माँ के सौभाग्य से ख़ुदा भी नसीब हुआ है 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Saturday 2 June 2018

A-197 पैसा बेईमान हो गया 15.5.18--2.56 AM

A-197 पैसा बेईमान हो गया 15.5.18--2.56 AM 


मैंने इसको इसके बचपन से ही देख रहा हूँ 

इकन्नी दुअन्नी चवन्नी की ज़बान हो गया 

गिरगिट बन रंग बदलना इसकी फितरत है 

खुद फरिश्ता बन सब का भगवान हो गया 

क्यों कि पैसा बेईमान हो गया!


किसी भिखारी की हथेली पर गुमशुदा बैठा 

उलझा ऐसे जैसे किसी का नुक्सान हो गया 

कभी अमीरों के तलवों तले खुर्द बुर्द हो रहा 

फिर भी समझ रहा कि मेरा सम्मान हो गया 

क्यों कि पैसा बेईमान हो गया!


किसी की मजबूरी बन खड़ा रहा बन ठन के 

किसी के लिए पल भर में गुलिस्ताँ हो गया 

इसके आने में आनन्द की कोई सीमा रही  

जाते ही लगा कि सब कुछ शमशान हो गया 

क्यों कि पैसा बेईमान हो गया!


जब तक मेरे पास रहा बन कर मेरा मुकद्दर

मैंने सोचा कि मेरा ही है और गुमान हो गया

जब मेरी जेब से निकल किसी का हो लिया

पल भर में ही किसी और का ईमान हो गया

क्यों कि पैसा बेईमान हो गया!


मजे थे जब पैसों का अंबार लगा रहता था 

दिन में जीना रातों का सोना हराम हो गया 

हर रात जवाँ होती थी और सुबह तबस्सुम 

निकल गया तो लगा कि कोहराम हो गया 

क्यों कि पैसा बेईमान हो गया!


बड़े अच्छे सम्बन्ध रहे इसके और मेरे बीच 

मुश्किल तो तब हुई जब घमासान हो गया 

और मेरी गुल्लक से निकल बाहर जा बैठा  

ऐसा रुतबा लगा मेरा ही जजमान हो गया

क्यों कि पैसा बेईमान हो गया!


मुआयना करता रहा उसके इसी रंग ढंग का 

एक पल तो मेरा दूसरे पल एहसान हो गया 

बड़ा अहंकार था मुझे उसके करीब होने का 

जब गया तो मैं एक अबला इंसान हो गया 

क्यों कि पैसा बेईमान हो गया!


मेरा प्यारा नसीब भी पैसों में लगा है तुलने

पैसों की उपलब्धि ही मेरा सम्मान हो गया 

इतना ज्यादा आदी हो चूका हूँ मैं पैसों का 

जब भी पैसों की कमी हुई परेशान हो गया 

क्यों कि पैसा बेईमान हो गया!


अपना भाईचारा तो सदा ही बना रहता था 

हर एक शख़्स हमारा प्रिय मेहमान हो गया 

पार्टियों का दौर क्या खूब चला करता था 

वक़्त क्या बदला हर कोई अंजान हो गया 

क्यों कि पैसा बेईमान हो गया!


नहीं आता करने कोई मुझसे सलाह मशवरा 

पैसा होना भी जैसे मानो अपराध हो गया 

लोग मुझको यह बता कर चले जाते हैं अब 

पैसों के मामले में तेरा नाम बदनाम हो गया 

क्यों कि पैसा बेईमान हो गया!


पैसा नहीं हुआ कभी किसी का ग़र अपना 

फिर भी पैसा ख़ुदा पैसा ही ईमान हो गया 

पैसों की वजह से ही हम भी पूजे जाते रहे  

इसीलिए तो यही सबका भगवान हो गया 

क्यों कि पैसा बेईमान हो गया!


अमृत पाल सिंह 'गोगिया'