Wednesday 8 July 2020

A-521 नग्नता 7.7.2020--7.31 PM





अपने सुखों की कल्पना करते हुए मैं बहुत दूर निकल गया। नग्न अवस्था में पड़ा किलकारियाँ मारता, दुनिया से अंजान, अपनी दुनिया का अपना ही आनन्द। न तेरी न मेरी। बस एक नयी दुनिया में प्रवेश करने का कौतूहल, उत्सुकता, बस और कुछ नहीं। 

पहले मैं ख़ुद नंगा आया था। अरे आया भी कहाँ था! धक्का लगाकर फेंक दिया गया था। 
शुक्र हो दाई का जिसने मुझे संभाल लिया था। 

मगर आज लोगों ने नंगा कर दिया सब कुछ छीन लिया, यहाँ तक कि मेरी अस्थियों के साथ कुछ सिक्के जरूर बहा दिए। बेहूदे सिक्कों ने भी साथ छोड़ दिया। तुरन्त डुबकी लगा कर पता नहीं कहाँ गायब हो गए और मैं अकेला भटकता रहा, पानी के बहाव के साथ, बीच-बीच में मेरी अस्थियां भी एक दूसरे से जुदा होती चली गयीं। मैं अवाक् रह गया, फिर से एक नयी मंजिल तलाशता हुआ आगे बढ़ गया, एक नयी दिशा की ओर। तभी मुझे लगा कि मैं कहीं ठहर गया हूँ। देखा तो एक मोटा सा स्तम्भ बाँहें फैलाये मेरा रास्ता रोके खड़ा है। शायद मेरा इन्तज़ार कर रहा था। मुझे एक सहारा मिल गया, मुझे यह सहारा भी अच्छा लगने लगा। मैं उसके गले लगकर खूब रोया, अपने दिल की सारी भड़ास निकाल डाली। बड़ा हल्का हो गया था मैं। 

तभी पानी की एक लहर ने आकर मुझपे हमला किया और मुझे बहाकर अपने साथ ले गया। उसने गुस्सा भी किया कि तू यहाँ कहाँ रुक गया। यह जगह तेरे लिए नहीं है। तुमको तो मेरे साथ चलना है। जब तक मैं न रुकूँ तू नहीं रुकेगा। मरता क्या न करता, मैं भी चल पड़ा तभी अचानक पानी का बहाव आगे निकल गया और मैं एक मछुआरे के जाल में अटक गया। 

मैं घबरा गया कि अब क्या होगा, होना क्या था, वही हुआ जिसका मुझे अंदेशा था, मछुआरे ने मछलियां निकाल लीं और मुझे उठाकर एक ओर फेंक दिया। मुझे बहुत गुस्सा आया, ऐसे कैसे कोई मुझे फेंक सकता है। मेरा इतना नाम था। लोग मुझे कितनी इज़्ज़त से बुलाते थे। इतना बड़ा व्यापार, लोग मेरे आगे पीछे घूमते थे। कुछ तो डर से कांपते थे। कितनों का तो मैं माई-बाप था। और यह मुझे ऐसे फेंक कर चला गया जैसे मेरी कोई औकात ही नहीं है। हद्द हो गयी यार! हाँ याद आया मेरे सारे दोस्त, मित्र तो साथ आये ही नहीं। इतना धन अर्जन किया, वो सब भी लगता है वहीं छूट गया या कमीनों ने वहीं रख लिया। अरे मेरी बीबी, मेरे प्यारे-प्यारे बच्चे, सगे सम्बन्धी आखिर सब कहाँ रह गए। 

हे भगवान तू कहाँ है। यह तुमने मेरे साथ क्या किया। मेरे अपने कितने दुखी हो रहे होंगे। मेरा पोता तो निर्बिघ्न मुझे ढूंढ़ता होगा। एक पल भी मुझसे दूर न रहता था। कैसे रह रहा होगा। ऐसा क्यों किया भगवान? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था। मैं अब अकेला कैसे जियूँगा? इतने वीराने में जहाँ कोई भी अपना नज़र ही नहीं आता। अरे यह क्या? यह कीड़े मेरे बदन पर क्या कर रहे हैं। कोई हटाओ इनको। कोई सुनता भी नहीं। तभी एक वाहन आया और मुझे कुचलता हुआ चला गया। मैं मन मसोस कर उस वाहन को देखता रहा। कोई नहीं रुका आज मेरे लिए। सब पराये हो गए। अब तो बस ठोकरें मारते हैं। आज पता लगा मुझे मेरी औकात का। अच्छा किया भगवन! तुमने मुझे मेरी औकात दिखा दी। 

बहुत ज़ोर लगाया पर कुछ न हुआ, हारकर मैंने अपने हाथ खड़े कर दिये। अब जो करना है तू ही कर, मैं तो थक गया! जैसे ही मैंने समर्पण किया मेरे आनंद की कोई सीमा न रही, मुझे असीम सुख का एहसास हुआ। तत्क्षण मैं गहरी निद्रा में चला गया। अब मुझे कहीं नहीं जाना था। मानो ज़िंदगी लौट आयी हो!

अमृत पाल सिंह 'गोगिया' 
99887 98711