Thursday 7 February 2019

A-436 तेरी तस्वीर 6.2.19--3.05 A

तेरी तस्वीर से ही काम चला लेता हूँ 
जब बिगड़ जाए तो नई बना लेता हूँ 
अक़्स दिख जाये जब तेरा आइने में 
मैं अक्सर उसे सीने से लगा लेता हूँ 

इश्क़ मोहब्बत की बातें होती हैं जब 
तुम्हें तेरी तस्वीर से निकाल लेता हूँ
बातें करते-करते ख़त्म हो जाएं जब 
तेरी सूरत पर ही नज़रें टिका लेता हूँ

हुस्न चाहिये और क़द्र बहुत करता हूँ 
इसीलिए तुझे मैं अपना बना लेता हूँ 
लज्ज़ा हद से पार तो हो ही जाती है 
ख़ुद की गलती ख़ुद ही सज़ा लेता हूँ 

अपना कहूँ फिर भी बिगड़ जाये ग़र 
तो मैं ख़ुद को ख़ुद से गिरा लेता हूँ 
दूर जाते ही एक कसक सी उठती है 
दर्द को बहुधा सीने में छिपा लेता हूँ 

जिरह करने वाला कोई भी नही होता 
कोई भी रूठे खुद को ही मना लेता हूँ 
लकीरों से बाक़ायदा दोस्ती निभाकर 
तेरी मुस्कान भरी तस्वीर बना लेता हूँ

धीरे-धीरे तुझसे मोहब्बत हो चली है 
इस एहसास को तुमसे छिपा लेता हूँ 
छूट न जाये हाथों से तेरा दामन कहीं 
इसीलिए दामन को ही दबा लेता हूँ 

अक्सर सोचता हूँ तू होती ही न अगर 
फिर ख़ुद को ख़ुद ही समझा लेता हूँ 
जमीन को आसमां से मिलता देखकर 
मैं भी अपना सर गर्व से उठा लेता हूँ 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'




7 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना

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  2. बहुतख़ूब हर एक पहलू का बखूबी बयां
    आप की गहरी सोच और सख्शियत से रूबरू
    होने का इस से बेहतर अनुभव किया होगा।

    तू दिल से ना जाये तो मैं क्या करूँ
    तू ख़यालों से ना जाये तो मैं क्या करूँ
    कहते हैं खवाबों मैं होगी मुलाकात उनसे
    पर नींद ना आये तो क्या करूँ।

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    1. Thank you so much for your appreciation!
      कहते हैं खवाबों मैं होगी मुलाकात उनसे
      पर नींद ना आये तो क्या करूँ। बहुत ख़ूब ज़नाब!

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  3. ਅੰਦਰੂਨੀ ਗਹਿਰਾਈਆਂ ਦੀ ਅਵਸਥਾ ਬਿਆਨ ਹੈ

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