Tuesday, 21 January 2020

A-486 लम्हें 22.1.2020--8.08 AM



जब लम्हें भी आतुर हो सरकने लगते हैं 
तो कुछ छूटने का एहसास घना होता है 

क्या था मेरे एहसासों के तले दबा हुआ 
पता भी नहीं था मगर दर्द जवां होता है 

रिश्तों में आती दरार के देखकर सहसा
आँखें थोड़ी सी नमी दिल है कि रोता है 

रिश्ते की आड़ में ही रिश्ते भी निभाये है 
फिर कौन सा दर्द ज़ख्मों को संजोता है 

रिश्ते तो बने हैं उसी खुदाई की मर्ज़ी से 
तो फिर हम कौन हैं जो हर भार ढोता है 

पाँचों उँगलियों को भी उलझता देखा है 
फिर बंद मुट्ठी ही उनका जवाब होता है 

शुक्र है कि रिश्ते भी उसकी नियामत हैं 
अवर भी तो किसी के कन्धे पर रोता है 

छोड़ दे अहम इसने क्या दिया अबतक 
यह तो रिश्तों में मात्र दर्द ही संजोता है 

जब मैं चार कंधों पर ही सवार हो गया 
तब किसका मातम अब तू क्यों रोता है 

आओ आज को पहचानें कुछ इसकदर 
गिले-शिकवों से जो बुरा हाल होता है 

रिश्तों को खुदाई समझ कर पूजा करें 
देखा कैसे तरन्नुम का एहसास होता है 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

Thursday, 16 January 2020

A-485 मैं भिखारी 17.1.2020--6.22 AM



मैं भिखारी तू भी भिखारी, 
भिखारी के हम जाये हैं 
दानी पुरुष का दावा करते 
ख़ुद से ख़ुद भरमाये हैं 

दीन दयाल का दावा झूठा 
बन गए हम सरमाये हैं 
कौन जात कौन पसरीचा 
हर डेरे से माँगत आये हैं 

कभी मंदिर तो कभी पीरों 
के मज़ार चाटते आये हैं  
चाहे हो झूठा साधु साध्वी 
गिड़गिड़ाते चले आये हैं 

गिरा हुआ नहीं हम सा और 
फिर भी हम इतराये हैं 
चल 'पाली' माँग ले माफ़ी 
अहम के घर से आए हैं 

ना कर बेक़द्री तू किसी की 
एक ही प्रभु के जाये हैं 
आओ मिल बैठें सब केवल 
प्रभु ही हमारे सहाय हैं 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'