मैं भिखारी तू भी भिखारी,
भिखारी के हम जाये हैं
दानी पुरुष का दावा करते
ख़ुद से ख़ुद भरमाये हैं
दीन दयाल का दावा झूठा
बन गए हम सरमाये हैं
कौन जात कौन पसरीचा
हर डेरे से माँगत आये हैं
कभी मंदिर तो कभी पीरों
के मज़ार चाटते आये हैं
चाहे हो झूठा साधु साध्वी
गिड़गिड़ाते चले आये हैं
गिरा हुआ नहीं हम सा और
फिर भी हम इतराये हैं
चल 'पाली' माँग ले माफ़ी
अहम के घर से आए हैं
ना कर बेक़द्री तू किसी की
एक ही प्रभु के जाये हैं
आओ मिल बैठें सब केवल
प्रभु ही हमारे सहाय हैं
अमृत पाल सिंह 'गोगिया'
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