Thursday 31 December 2015

A-051 आओ चलो लौट चलें 1.1.16—5.15 AM

आओ चलो लौट चलें 1.1.16—5.15 AM

आओ चलो लौट चलें, जिंदगी के उस छोर
जहाँ माँ का सहारा था
दुनिया से प्यारा था
नहीं कोई छीन सका, माँ का दुलारा था

आओ चलो लौट चलें, उस लंगोट की ओर
जिसकी बाँहों में बाहें डाले
नहीं मिलता था वक़्त
कब निकल जाता था सूरज
कब हो जाती थी भोर

आओ चलो लौट चलें, उस मर्दानी की ओर
खुद बिछ गए जिसकी राहों में
न कोई सबब मिला न कोई छोर
दिन भी निकला उसकी नीयत में
रात चुनरिया ओढ़ 
सब कुछ अपने वश में था
फिर भी बने रहे चित चोर

आओ चलो लौट चलें, उस साथी की ओर
साथ दिया जीवन भर
न गिला न शिकवा न कोई मरोड़ 
रंग भरे जीवन में लगाया पूरा जोर
न कोई सानी न हो सकता कोई तोड़
हँस कर जीवन निकला हो कर भाव विभोर

आओ चलो लौट चलें, उस बगिआ की ओर
हर फूल खिला है, हर रंग का है निचोड़
छोटे बड़ों का मिश्रण, लवण और मीठा घोल
क्या रखा है खुद होने में, अंहम का तुरछा घोल
मिट जाने में मिल जाता है
रिश्ता एक अनमोल। ....रिश्ता एक अनमोल

Poet; Amrit Pal Singh Gogia "Pali"


Saturday 19 December 2015

A-046 क्या फर्क पड़ता है 19.12.15—6.42 AM

क्या फर्क पड़ता है 19.12.15—6.42 AM


क्या फर्क पड़ता है……….
कि तुम कितने महान हो
कि तुम कितने गुणवान हो

कि तुम कितने धनवान हो
कि तुम कितने पहलवान हो

कि तुम कितने कृपालू हो
कि तुम कितने दयालू हो

कि तुम संत हो कि महात्मा हो

फर्क पड़ता है……….
जब किसी के मुख का निवाला बनोगे
जब किसी लाचार का शिवाला बनोगे

किसी के लिए तुम जहमत उठाओगे
जब किसी की तुम पत रख पाओगे

जब किसी का दर्द समझ पाओगे
जब किसी को वाकई सुन पाओगे

अपनी एक पहचान बना पाओगे
पहचान को उपलब्ध हो जायोगे

जब तुम किसी को समझ पाओगे
जब तुम किसी को अपना बनाओगे

अपने दिल की बात कह पाओगे
तुम किसी के आँसू पोछ पाओगे

अपनी कुछ शिकायतें छोड़ पाओगे
जब दुश्मन को भी गले लगाओगे

तब कहीं एक नयी संभावना होगी
संभावना की एक नयी उड़ान होगी

सारा जहाँ अपना होगा हर चेहरे पे "पाली" मुस्कान होगी
हर चेहरे पे "पाली" मुस्कान होगी

Poet; Amrit Pal Singh Gogia "Pali"


Saturday 12 December 2015

A-133 लम्हा लम्हा जिंदगी यूँ ही कटेगी 10.12.15—4.00 PM

लम्हा लम्हा जिंदगी यूँ ही कटेगी 10.12.15—4.00 PM


लम्हा लम्हा जिंदगी यूँ ही कटेगी
कभी कोई हँसेगा और कोई हँसायेगा
कभी कोई रोयेगा और कोई रुलाएगा
कोई गीत गायेगा और कोई गवाएगा
कोई गीत सुनेगा और कोई सुनायेगा

कोई हारेगा और कोई हरायेगा
कोई डरेगा और कोई डराएगा
कोई भागेगा और कोई भगायेगा
कोई चलेगा और कोई चलायेगा

नहीं सुनने का सबब अपना है
बेचैन होने का जज्ब अपना है
गंभीर जिंदगी क्यों हो चली है
हँसकर जीने का रस्म अपना है

लम्हा लम्हा जिंदगी यूँ ही कटेगी
बचपन गया अब जवानी छँटेगी 
अधेड़ उम्र आने को बेकरार होगी
बुढ़ापे की जिंदगी उम्र दराज होगी

अपनों के बीच अपनों के संग
कई रंग आएंगे जो होंगे बेरंग
रंगों की अपनी एक जमात होगी
प्यार तुम्हारा होगा उनकी मात होगी

शिकायतों का पुलिंदा जो छूट गया कहीं
उस शून्यता में अपनों की बरसात होगी
भूल जाओगे मजहब जिंदगी जीने का गर
जिंदगी से तुम्हारी पहली मुलाकात होगी …….
जिंदगी से तुम्हारी पहली मुलाकात होगी

Poet: Amrit Pal Singh Gogia