Saturday 12 December 2015

A-133 लम्हा लम्हा जिंदगी यूँ ही कटेगी 10.12.15—4.00 PM

लम्हा लम्हा जिंदगी यूँ ही कटेगी 10.12.15—4.00 PM


लम्हा लम्हा जिंदगी यूँ ही कटेगी
कभी कोई हँसेगा और कोई हँसायेगा
कभी कोई रोयेगा और कोई रुलाएगा
कोई गीत गायेगा और कोई गवाएगा
कोई गीत सुनेगा और कोई सुनायेगा

कोई हारेगा और कोई हरायेगा
कोई डरेगा और कोई डराएगा
कोई भागेगा और कोई भगायेगा
कोई चलेगा और कोई चलायेगा

नहीं सुनने का सबब अपना है
बेचैन होने का जज्ब अपना है
गंभीर जिंदगी क्यों हो चली है
हँसकर जीने का रस्म अपना है

लम्हा लम्हा जिंदगी यूँ ही कटेगी
बचपन गया अब जवानी छँटेगी 
अधेड़ उम्र आने को बेकरार होगी
बुढ़ापे की जिंदगी उम्र दराज होगी

अपनों के बीच अपनों के संग
कई रंग आएंगे जो होंगे बेरंग
रंगों की अपनी एक जमात होगी
प्यार तुम्हारा होगा उनकी मात होगी

शिकायतों का पुलिंदा जो छूट गया कहीं
उस शून्यता में अपनों की बरसात होगी
भूल जाओगे मजहब जिंदगी जीने का गर
जिंदगी से तुम्हारी पहली मुलाकात होगी …….
जिंदगी से तुम्हारी पहली मुलाकात होगी

Poet: Amrit Pal Singh Gogia



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