Friday 4 December 2015

A-100 मेरा वजूद क्या है? 4.12.15--10.10 PM


मेरा वजूद क्या है? 4.12.15—10.10PM

A-100 मेरा वजूद क्या है? 4.12.15—10.10PM 

मैं अपना वजूद ढूँढ़ता रहा 
हर गली हर नुक्कड़ 
हर किनारे पे 
कभी उनके घर 
कभी अपने घर 
ढूंढ़ता रहा 
हर एक के इशारे पे 

पापा मम्मी से पूछा 
मेरा वजूद क्या है? 
अभी तुम बच्चे हो 
मन के सच्चे हो 
दिल के कच्चे हो 
जान कर क्या करोगे
कभी जियोगे कभी मरोगे 
जब थोड़े बड़े हो जाओगे
तब तुम समझ पाओगे 

मैंने अपनी टीचर से पूछा
मेरा वजूद क्या है? 
अभी तुम विद्यार्थी हो 
तुम्हारा काम पढ़ना लिखना है 
पढाई में अव्वल आना है 
दुनिया में नाम कमाना है 
इसकी चिंता तुम छोड़ो 
यह किस्सा बहुत पुराना है 

समाज के ठेकेदारों से पूछा 
मेरा वजूद क्या है? 
तू इतना सुन्दर नौजवान है 
पूरे मोहल्ले की शान है 
हँसता और हँसाता चल 
दुनिया की परवाह न कर
कुछ अपनी सुन कुछ सुनाता चल 
सब समझ आ जायेगा 
फिर तू धीरे से मुस्कुरायेगा 

मैंने देश और समाज से पूछा 
मेरा वजूद क्या है? 
जवाब आया और मैं मुस्कुराया 
तू देश की धरोहर है 
तू देश की पूँजी है 
तू ही तो सफलता की कुँजी है 
तू ही तो देश की शान है 
तू ही तो देश की पहचान है 
तू नहीं तो देश नहीं 
तू नहीं तो प्रवेश नहीं 
तू ही तो तरक्की का द्वार है 
तुझपे ही तो सारा भार है 

मुझे मेरा वजूद मिल गया 
मेरा सीना अच्छा खासा तन गया 
मैं कितना अहम हूँ 
अपने देश के लिए 
मैं एक आम नागरिक हूँ 
इस परिवेष के लिए 
मैं एक आम नागरिक हूँ 
अपने देश के लिए। ...... अपने देश के लिए 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


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