Sunday 25 October 2015

A-186 बात इतनी सी है 26.10.15--7.15 AM

A-186 बात इतनी सी है 26.10.15--7.15 AM

बात इतनी सी है .......... 
वो खूबसूरत है मुझे चाहती है
वो खूबसूरत है उसे मैं चाहता हूँ

उसका वो हसीं हुस्न चार चाँद लिए फिरता है
हर कोई उसपर फिदा है और उसी पे मरता है

हुस्न तो आज मुझ पर ही फ़िदा हुआ जाता है
थोड़ा सा करीब आया है और थोड़ा शर्माता है

ये चाहत का सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा
कौन किसको चाहता है कब और क्यूँ कहेगा

मुकद्दर है उनका या बन के आयी किस्मत मेरी
इसका फैसला भी कौन कब क्यूँ कैसे करेगा

उनके वो नैन नक़्श उनके नखरे और वो अदायें
उफ़मेरी तौबा जब भी हम उनके करीब जाएं

पिघला जाता है मोम का ये नाजुक सा पुतला
बदलने सी लगती हैं इर्द गिर्द की सारी फिजायें

उनके वो छोटे से मोटे से मखमली उभार
करते हैं पागल छोड़ देते हैं बीच मझधार

कैसे बताऊँ यही वजह है पास आने की
सोचता हूँ ये भी कोई बात है बताने की

उनका करीब आना मुझे और भी सताता है
छू लूँ तो और भी मुश्किल, मन घबराता है

कैसे करूँ खुद पे काबू समझ आता नहीं
आगे बढूँ तो दिया हुआ वायदा टूट जाता है

मोहब्बत का ये सबब इतना आसान नहीं है
मन की बेचैनी भी है और कोई ईमान नहीं है

इबादत भी कैसे करूँकैसे मैं सज़दा करूँ
दिल भी काबू नहीं और यह आसान नहीं है

उनका प्यारा सा दिल केवल खून से भरा है
फिर कैसे कहूँ कि यह दिल मुझ पे मरा है

उनके दिल में कोई जगह खाली नहीं है
केवल यंत्र है इसका कोई माली नहीं है

दिल से हटकर देखा तो एक हसीन सपना है
दूर रहकर भी कुछ करीब कोई तो अपना है

हर मोड़ पे उनका एहसान मुझे नज़र आता है
उनका ऐसे करीब आना मुझे बहुत भाता है

कमर का लचकना और लचक लचक कर जाना
उनका गिलहरी फुदकना और फुदक फुदक आना  

उनका बल खा खाकर गिरना बल खाते हुए जाना
परदे के पीछे खड़े होनाफिर मुस्कराते हुए आना

उनके खूबसूरत नितम्ब आकार से लिए होते हैं
एक नज़र पड़ते ही हम कितने सपने पिरोते हैं  

ख्यालों और सपनों में भी हम साथ साथ सोते हैं
हम दोनो के अरमान और हम साथ साथ होते हैं

कामुक सी पतली टांगें बेचैन किये देती हैं
उनका वो थिरकना और मदहोश किये देती हैं

उनसे पूछो उनका सबब इनको थिरकाने का
ढूंढा है कोई नया तरीका हमको रिझाने का

बात इतनी सी है .......... 



वो खूबसूरत है मुझे चाहती हैवो खूबसूरत है उसे मैं चाहता हूँ

Friday 23 October 2015

A-053 कहार तूँ डोली उठा 28.9.15—9.05 AM


कहार तूँ डोली उठा 28.9.15—9.05 AM

बेटी मेरी ससुराल चली
मत कर इंतज़ार मेरा
तूँ मुझको और रुला…..
कहार तूँ डोली उठा…..

बड़े लाडों से है यह पली
डोली को धीरे से उठा
कदम देख देख रखियो
तूँ मुझको और डरा…..
कहार तूँ डोली उठा …..

चुपके चुपके से आगे बढ़
हुई नहीं है कभी मुझसे जुदा
लपक कर लग जाएगी गले
फिर कौन करेगा इसको जुदा…..
कहार तूँ डोली उठा…..

विदाई के गीतों के संग
ले जा तूँ इसको भगा
पीछे मुड़ को जो देख लिया
नहीं मिलेगा कोई इसको सगा…..
कहार तूँ डोली उठा…..

धीरे धीरे से उतारिओ इसे
स्वप्न टूट जाये रोती कराह
चिपक कर सो जाती है फिर
कैसे कर पायूँगा मैं इसको जुदा…..
कहार तूँ डोली उठा…..


Poet; Amrit Pal Singh Gogia “Pali”