अस्तित्व
बचाने का रगड़ा हो गया
बहस छिड़ी
खुद को बचाने के लिए
अपना अपना
नाम कमाने के लिए
अपने आप
को सही बताने के लिए
एक दूसरे
को गलत ठहराने के लिए
अकड़ दिखा
यह बात बताने के लिए
जो करना
है कर लो बचाने के लिए
प्रमाण
भी इकट्ठे किये दिखाने के लिए
यह बात
दूसरोँ को समझाने के लिए
हार जीत
का फैसला हराने के लिए
दुनिया
को यह दिखाने के लिए
कि मैं
सही हूँ………।
जब देखा
तो बहुत कुछ खो चुका था मैं
प्यार का
कुछ समझ आया नहीं
अपनेपन
को कोई साया नहीं
जोश उमंग
के चिथड़े उड़ गए
सेहत से
न जाने कब उलझ गए
अभिव्यक्ति
न जाने कहाँ खो गई
शांति न
जाने कैसे भंग हो गई
संतोष पूर्ती
मन की बेरंग हो गई
करना तो
एक का ही चुनाव था
जब मैंने
छोड़ा कि मैं सही हूँ
जिंदगी
गले मिली कि मैं वही हूँ
कि मैं
वही हूँ……
Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"
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