Thursday 8 October 2015

A-028 क्यों इतनी बेचैन है 27-6-15 6:43AM

क्यों इतनी बेचैन है  27-6-15 6:43AM


कभी बैठते हो 
कभी भाग जाते हो 
कभी दूर जाते हो 
फिर करीब आते हो 

कभी उदास होते हो 
कभी मुस्कराते हो 
कभी आँखें नम होती हैं 
कभी फूलों से खिल जाते हो 

कभी चुप हो जाते हो 
कभी खुद ही बताते हो 
कभी रूठ जाते हो 
कभी खुद ही मनाते हो 

कभी बोलते हो 
कभी खुद ही शरमाते हो 

एक पल शांत होते हो 
दूसरे पल घबराते हो 
कभी गले लगते हो 
कभी खुद को छिपाते हो 

समझ नहीं आया कि 
आखिर क्या जताते हो 
जो इतना घबराते हो 
खुद को सताते हो 

बस भी करो अब 
जब पाली तेरे साथ है 
क्यों इतनी बेचैन है 
जब हाँथों में हाँथ है 

क्यों इतनी बेचैन है 
जब हाँथों में हाँथ है 


Poet; Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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