Saturday 12 November 2016

A-210 मैं चिड़िया बन 13.11.16—7.23 AM

मैं चिड़िया बन 13.11.16—7.23 AM

मैं चिड़िया बन बन जाऊँगा
मैं सारे वन में धूम मचाऊँगा 
जो टहनी मुझे मिल जाएगी 
उसी टहनी को घर बनाऊँगा 

नहीं मैं शोर शराबा करना 
दुनिया को मैं दिखलाऊँगा
न कुछ मेरा है न कुछ तेरा
घर घर में दीप जलाऊँगा 

डाल डाल पर टहनी टहनी 
फुदक फुदक मैं इतराऊँगा 
दुनिया की परवाह नहीं अब 
अपनी गाथा खुद ही गाऊँगा 

आसमान की छत के नीचे 
झंडा भी ऊँचा मैं लहराऊँगा 
उम्र जाति का झगड़ा है सब 
दुनिया को भी मैं बतलाऊँगा 

घर घर जब खेला करते थे 
इस इशारे पर मैं जाऊँगा 
कौन सा घर कहाँ रह गया 
किसको अपना जतलाऊँगा

कैसा झगड़ा कौन सी थाली 
किस घर अंगना मैं जाऊँगा 
कोई मेरा होता टिक जाता 
सब का अहम मैं भगाऊँगा 

रात साँवरिया रैन बिना अब 
झूठ साँवरिया नहीं बनाऊँगा 
जिस दिल में दीप जले जब 
उसी का होकर रह जाऊँगा 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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