Tuesday 8 November 2016

A-209 तुम खुद ही 7.4.16—5.15 AM



तुम खुद ही 7.4.16—5.15 AM

तुम खुद ही बने खुद की तस्वीर हो 
तुम खुद ही बने अपनी तकदीर हो 
किधर देखते हो वहां कोई भी नहीं 
तुम देखो तुम ही अपनी तदबीर हो 

कुछ नहीं खुद ही खुद को देख लो 
अपनी ही नज़रों से खुद का भेद लो 
परखो जिंदगी की हर उस तरंग को 
बन के उमंग झकझोरे हर पतंग को 


परखो जरा देखो अपनी जुबान को 
बना रही है हर पल तेरी पहचान वो 
खुशियां के डोले भी तेरे ही बोल थे 
दुःख संकट जो बोले तेरे ही बोल थे 

एक पल पहले लगे हुए अम्बार थे 
दूजे पल बिखर गए सब ख्वार थे 
कौन था जिसने किया निर्माण था 
तुम्ही थे जिसने किया आह्वान था 



हर तस्वीर तुमने खुद ही बनाई है 
हर तस्वीर तुमने खुद ही सजाई है 
वह शहनाई भी तुमने ही बजाई है 
वही तेरी किस्मत बनकर आयी है 

जो तुमने कहा वही तो तुम हो गए 
अब क्यूँ अपने ख्यालों में खो गए 
गरिमा भी तेरी है उपवन भी तेरा है 
फूल जो भी खिले हैं मन भी तेरा है 

तेरे ही वो शब्द हैं तेरा ही मान है 
तेरी ही कद्र है तेरा ही सम्मान है 
तेरे शब्दों की वही तो पहचान है 
वही जिंदगी वही तो अभिमान है 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali

1 comment:

  1. कौन था जिसने किया निर्माण था
    तुम्ही थे जिसने किया आह्वान था

    Marvellous

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