छिपाये गर छिप जाता
न होता इश्के इम्तिहाँ
कुछ फूल यहाँ खिलते
कुछ फूल खिलते वहाँ
हर फूल बेख़ौफ़ होता
होता एक सुन्दर जहां
मुकर्रर पहले से होता
किसको मिलना कहाँ
तुम मेरे ही नसीब होते
होता वो सुन्दर कारवाँ
हर लम्हें में प्यार होता
प्यार का अपना जहां
मैं भी तेरा मन्सूर होता
तू होती मेरी नूरे जहाँ
इश्क़ भी परवान होता
हम रहते हरदम जवाँ
छिपाये गर छिप जाता
न होता इश्के इम्तिहाँ ……..
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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ReplyDeleteThank you so much for your appreciation! Gogia
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