आ जाया करो 11.8.16—5.49 AM
आ जाया करो
कभी सूरज बन
कभी पहली किरण
कभी लाली के संग
मुस्कराते हुए आ जाया करो
पंखुड़ी गुलाब बन
खुशबू की आड़ में
हवा की तरंग बन
मौसम की आड़ में
धीरे धीरे बिखर जाया करो
मौसम के गीत बन
हवा के संगीत बन
मीठी आवाज में
झींगुरों की साज में
कभी कोई संगीत सुनाया करो
मचल जायो कभी
सावन की ऋतु बन
पतझड़ की आड़ में
मौसम बरसात में
धीरे धीरे लिपट जाया करो
मत कर इन्तज़ार
बारिश के मौसम का
खुश्क हवाओं संग
धीरे से बदली बन
कभी यूँ ही बरस जाया करो
आंधी तूफ़ान बन
बाढ़ की शान बन
खुद बहकते हुए
मुझको बहका कर
कभी मुझको भी डराया करो
हवा के झोंके से
फूल भी गिरते हैं
झोंके से ही सही
तुम भी झटक कर
मेरे आगोश में समा जाया करो
Poet: Amrit Pal Singh Gogia
No comments:
Post a Comment