Wednesday, 31 May 2017

A-278 हर बार 29.5.17--9.31 AM

A-278 हर बार 29.5.17--9.31 AM

हर बार बदल लेते हो तस्वीर तबस्सुम 
कभी खिलखिला मिलते कभी गुमसुम 
कौन सी तस्वीर तुम्हारी कौन नहीं तुम 
हमने खुद से पूछा कैसे पहचानोगे तुम 

गेसुओं से पूछा रंग बदलने की फ़िजा 
बोले मर्दों को देते इन्हीं रंगों से सजा 
लहरा के बोले यह तो फ़ितरत हमारी 
मरती है दुनिया इसी पर फिरती मारी 

नयनों से पूछा कैसी अदा ये तुम्हारी 
क्यों आड़ी तिरछी क्यों चढ़े है ख़ुमारी 
टिकती नहीं क्यों जब मेरे नयन आएं 
झुक जाती क्यों, क्यों मुझसे शरमायें 

चिकने गालों का सच्चा राज क्या है 
बता दे खिलने का वो अंदाज़ क्या है 
खिलने पर सारा जहां फ़िदा हो जाये 
मर जाये संभलने में वो अंदाज़ क्या है 

होठों की लाली मुनस्सर चाँद सितारे
शोख़ अदाओं से मिले वो बात क्या है 
नहीं सानी तेरी सुराही गर्दन का कोई 
मदमस्त जवानी के वो अन्दाज़ क्या है 


मदमस्त जवानी के वो अन्दाज़ क्या है 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

Sunday, 28 May 2017

A-276 तुमको नहीं मालूम 28.5.17--2.08 PM

A-276 तुमको नहीं मालूम 28.5.17--2.08 PM

तुमको नहीं मालूम तुम कितनी हसीन हो 
कितनी ख़ूबसूरत हो कितनी नाज़नीन हो

तुम मृग नयनी हो या नयनों की मीर हो 
ज़ुल्फ़ों की घटा हो या उसकी तकरीर हो

मोहब्बत का नशा हो या उसकी तमीज़ हो
होंठ रसीले मधुशाला दिलक़श लज़ीज़ हो 

खुदा की धरोहर हो जन्नत की शरीफ़ हो 
फ़िज़ा की महक हो बहारों की तहरीफ़ हो 

तुमको नहीं मालूम तुम कितनी हसीन हो 
कितनी ख़ूबसूरत हो कितनी नाज़नीन हो

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

Monday, 22 May 2017

A-275 जो जान गया 22.5.17--7.56 PM



A-275 जो जान गया 22.5.17--7.56 PM

जो जान गया वो ये मान गया 
अपनी सीमा को पहचान गया 

सीमा के बाहर दिखता नहीं है 
मन कपटी भी लिखता नहीं है 

हम रुक जाते हैं पता होता है 
हर जवाब मन में गढ़ा होता है 

जिज्ञासा रखते तो ढूंड लेते हैं 
मज़े की बात वह सूँघ लेते हैं 

कुछ करने का संकल्प कर लें 
अहमं की हर पीड़ा वो हर लें 

हार जाना भी हार जाना नहीं है 
मौका मिला उसे गवाँना नहीं है 

गिरा नहीं तो क्या खाक उठेगा 
उठ गया तो हर जवाब मिलेगा 

गिरना ही सीढ़ी है चढ़ जाने की 
मिलती दिशा आगे बढ़ जाने की 

उठा जा अब न तू इंतज़ार कर 
न कर नाटक न फरियाद कर 

न कर नाटक न फरियाद कर 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Monday, 15 May 2017

A-271 तेरी इनायत 15.5.17--11.21 PM

A-271 तेरी इनायत 15.5.17--11.21 PM

तेरी नज़रों को देखूं और थोड़ा प्यार कर लूँ
तेरी इनायत हो तो थोड़ा इज़हार कर लूँ

तेरे प्यार में हमने तो ख़ुद को ही खो दिया
जो कुछ बचा है उसकी थोड़ी बात कर लूँ

तेरे तरन्नुम में गीतों का सिलसिला है तू
तेरी हकूमत में मैं एक गीत तैयार कर लूँ

मेरी शिक़ायतों का सिलसिला है बदस्तूर
उन के बीच रहकर तुमको स्वीकार कर लूँ

कई जन्मों का इंतज़ार जो मुकम्मल हुआ
विरह के कारण का थोड़ा मालूमात कर लूँ

तेरी ज़मीन पर हमने पाँव भी सोच के रखे
कहे एक दफ़ा तो लौट के विचार कर लूँ

तेरे क़दमों मैं बैठ कर तुमको देखा करूँ
तेरे क़दमों में बैठ अपना इंतकाल कर लूँ

तेरी नज़रों को देखूं और थोड़ा प्यार कर लूँ
तेरी इनायत हो तो थोड़ा इज़हार कर लूँ

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Wednesday, 3 May 2017

A-270 तेरा उदास चेहरा 21.4.17--9.02 AM

A-270 तेरा उदास चेहरा 21.4.17--9.02 AM

तेरा उदास चेहरा यह एक लम्बी दास्ताँ है 
कई कहानियों को लेकर यह मुखर हुआ है 

हम भी रहे हैं गवाह तेरे इस सफ़र के 
हमसफ़र भी रहे हैं तेरी इस दास्ताँ के 

उम्मीद लगाए बैठे हैं कोई कहे नई कहानी 
बन जाए ज़िन्दगी मेरी बन जाए मन रूहानी

शब्दों का फेर बदल है ये मेरी है कहानी 
जैसे शब्द निकले वैसी ही है ज़िन्दगानी 

कब तक जुड़े रहोगे कहानियों के समंदर 
चलते हैं नए रास्ते बन के जायेंगे सिकंदर 

ज़िन्दगी के मसलों से अब और क्या उभरना 
गिर कर तो देखो ज़रा गिरना ही है संभलना 

उठता भी वही है जिसने कभी गिरकर है देखा
जो गिरा ही नहीं उसकी फूटी है क़िस्मत रेखा

सीखना कहाँ है जहाँ हों तूफ़ानों के घेरे 
वर्ना कौन पूछे कितने बलिष्ठ बाजू तेरे

नहीं मिलती मंज़िल जो केवल बढ़ते जाएँ 
ठिकाने का पता हो तभी तो पहुँच वो पाएं 

कुछ ग़लत नहीं है सब शब्दों का हेर फेर है 
ग़लतियाँ भी नहीं है वो सब तेरा तेर मेर है 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”