Sunday 25 June 2017

A-293 कुछ छू जाता है 25.6.17—4.08 AM

A-293 कुछ छू जाता है 25.6.17—4.08 AM 

कुछ छू जाता है 
तेरे होने का एहसास 
कुछ क़दम दूर कुछ क़दम पास 

कुछ छू जाता है 
करीब होकर भी करीब न होना 
दूर रहकर भी दूर न जाना 

कुछ छू जाता है 
ख़यालों की दुनिया में तेरा चले आना 
प्यार से मिलना और चले जाना 

कुछ छू जाता है
तू करे इनकार फिर भी करे तू बात 
ख़ुश हो जाए देकर मुझे तू मात 

कुछ छू जाता है
तेरा नहीं आना और नख़रे जताना 
और फिर एकदम से मान जाना 

कुछ छू जाता है
तेरा मंद मंद मुस्कुराना फिर चुप्पी लगाना 
नज़रें झुकाना थोड़ा शर्माना 

कुछ छू जाता है
खामोश निगाहों से देखते चले जाना 
नीर बहाना चेहरा छिपाना 

कुछ छू जाता है
हँस हँस के हँसाना और हँसते जाना 
फिर एकदम उठकर चले जाना 

कुछ छू जाता है
दर्द का ईज़हार करना कई सवाल करना 
प्यार होते हुए भी इंकार करना 

मेरे रक़ीब की बात करना 
उसके प्यार का ईज़हार करना 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Saturday 24 June 2017

A-290 एक मुसाफ़िर 22.6.17-6.52 AM

A-290 एक मुसाफ़िर 22.6.17-6.52 AM

एक मुसाफ़िर की नज़र में बता दे तू कौन है 
खुदा है ज़मीं है हलचल है या कि 
तू मौन है 

हम समझ नहीं पाए तेरा ये करिश्मा 
एक ही सवाल पूछते रहे की 
तू कौन है 

हमने तुमको देखा ग़रीबी की आहट में 
जब उसके मुख से निकले 
तू ही सिरमौर है 

हमने देखा है तुमको भूखों की तड़प में 
एक नवाला मिल जाये 
तो हँसी मौज है 

तुमको देखा है मरीज़ों की तड़प में 
एक बार तू चला आए 
तो ज़िन्दगी कुछ और है 

देखा है तुम्हें वेश्याओं के कोठे पे 
थोड़ा नज़राना मिल जाए 
तो क़ाबिले ग़ौर है 

भटके हुए राही भी इंतज़ार करते है 
पकड़ ले ऊँगली कोई 
वही करता ग़ौर है 

बादशाही में भी झलक मिलती है 
मिल जाए थोड़ा और तो 
भाव विभोर है 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


A-292 तू तो था 23.6.17--9.05 PM

A-292 तू तो था 23.6.17--9.05 PM

जब कोई नहीं था तू तो था 
माँ की कोख में पिता की सोच में 
नौ निहाल में किस्मत बेहाल में 
सरगम की ताल में पवन की चाल में 
रवि की तपिश में बारिश की दबिश में 
शशि की किरण में कस्तूरी हिरन में 
हवा की नमी में मेरी कमी में 
आँधी तूफ़ान में मन विश्राम में 
आनन्द विश्राम में कठिन परिणाम में 
रातों के अँधेरे में सुबह के फेरे में 
सुहाग की आड़ में रिश्ते दरार में 
रिश्ते पवित्र में दुश्मन चरित्र में 
मिठले यार में तेरे मेरे प्यार में 

जब कोई नहीं था तू तो था 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

Friday 23 June 2017

A-291 मैं चाहता हूँ 22.6.17--10.32 AM

A-291 मैं चाहता हूँ 22.6.17--10.32 AM 
मैं चाहता हूँ, तुमको, तुमसे ज्यादा प्यार करूँ 
हर लम्हा तेरे साथ रहूँ, खुल के इज़हार करूँ 
तेरा एक एक पल मेरा हो, मैं इस्तेमाल करूँ 
मेरी खुशियाँ तेरी हों, तेरे ग़म मैं निस्तार करूँ 

तेरी मोहब्बत का नशा सा, जो छाने लगा है 
तलब बढ़ गई है और दिल, मुस्कुराने लगा है 
तुम मेरी हक़ीक़त हो, इससे कैसे इंकार करूँ 
मैं चाहता हूँ, तुमको, तुमसे ज्यादा प्यार करूँ 

तुमसे दूरी का ख़्वाब जब भी नज़र आता है 
जमीं खिसकती जाती है मन भी घबराता है 
डर के मारे डरता हूँ कि कैसे मैं इज़हार करूँ 
मैं चाहता हूँ, तुमको, तुमसे ज्यादा प्यार करूँ 

तेरी आने की आस तो अब भी लगाये बैठे हैं 
तुझे पाने की तलब और बिन बुलाये बैठे हैं 
विचारों के तरन्नुम का मैं कैसे इस्तेमाल करूँ 
मैं चाहता हूँ, तुमको, तुमसे ज्यादा प्यार करूँ 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”




Wednesday 21 June 2017

A-289 न तुम खुदा होते 19.6.17--9.09 PM

A-289 न तुम खुदा होते 19.6.17--9.09 PM

न तुम खुदा होते न हम फ़िदा होते 
चाँद तारे नुमा खुद की जगह होते 

पहली किरण और दमकता चेहरा 
ख़ुशी के आँसू से दे रहे सज़ा होते 

देखते रहते तुझे किसी आलने से 
तेरी चकाचौंध पर हुए फ़ना होते 

चंदा की रोशनी तारों की उलझन 
हम भी करवा रहे कुछ सुलह होते 

पवन बहाव उसकी अदा निराली 
फिकरों की दौरे भी बेवज़ह होते 

हरी मखमली घास सघन जवानी 
मादक अदा होती व हमनवा होते 

बुलबुल की चहक उसकी गायकी 
मधुर अवाज पर हुए फ़िदा होते 

जर्रे जर्रे में पनपता मैंने नूर देखा 
समझ न पाते हो गए फ़ना होते 

तेरे आलम में कहीं हम खो जाते 
ढूँढते रहते और तुम से जुदा होते 

न तुम खुदा होते न हम फ़िदा होते 
न तुम खुदा होते न हम फ़िदा होते 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


Wednesday 14 June 2017

A-287 तेरे आने से 14.6.17--6.16 PM

A-287 तेरे आने से 14.6.17--6.16 PM

तेरे आने से क्यों फ़िज़ा महके
तेरे जाने से क्यों मलाल आए 
तेरे आने से हुस्न शबाब खिले 
तेरे जाने से क्यों सवाल आए 

भड़के शबाब जब अदा बहके 
वक़्त ठहरे उसमें उन्माद आए 
हर फूल ख़ुशबू से उन्मुक्त हो 
ज़र्रा ज़र्रा तक़दीर आज़माए

वक़्त ठहर गया ऐसा नहीं है 
लिए बैठा एक तूफ़ान समाये
बस तेरा इन्तज़ार किए बैठा  
होठों पर बेबसी है मुस्कराए

ज़िन्दगी तिलमिलायी बैठी है 
तेरे क़दमों का कोई हज़ूम आए 
तू बेतकल्लुफ़ मेरी ओर झुके 
तेरा शर्माना तुमसे ही हार जाये

तेरे आने से क्यों फ़िज़ा महके
तेरे जाने से क्यों मलाल आए 
तेरे आने से हुस्न शबाब खिले 
तेरे जाने से क्यों सवाल आए


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Tuesday 13 June 2017

A-285 छू लेने की तमन्ना हुई 3.4.17--1.58 AM

A-285 छू लेने की तमन्ना हुई  3.4.17--1.58 AM

छू लेने की तमन्ना हुई 
उस पर क़ाबू पा न सके 
खुद पर क़ाबू कर लिया 
खुद को हम न हरा सके 

अश्क़ों को बहा न सके 
तुमको हम भुला न सके 
रोयें तो किस बिनाह पे  
नीर भी हम ला न सके

यह कैसी ज़िन्दगी भला 
करीब भी तो आ न सके 
तेरा ज़िक्र भी तो आएगा 
तुमको हम बता न सके 

हम तेरी सोहबत में रहे 
यह भी हम बता न सके 
प्यार जो तुमसे किया है 
यह भी हम जता न सके 

बड़ी मुश्किल में खड़े हैं 
खुद को समझा न सके 
इतने करीब पाकर भी 
हम तुमको बुला न सके 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “pali”

Friday 9 June 2017

A-282 बड़े ख़ुशनसीब हैं हम 5.6.17--8.37 PM

A-282 बड़े ख़ुशनसीब हैं हम  5.6.17--8.37 PM

बड़े ख़ुशनसीब हूँ मैं कि तुम्हारा प्यार मिला 
बड़े मुद्दत के बाद तुम जैसा कोई यार मिला 

कोई पूछे तो बताऊँ सच्चे यार की कहानी 
अजनबी हूँ मैं फिर भी तुम्हारा संसार मिला 

तेरी कमसीन बाहों में सुखद आभास जो है 
कटीली मुस्कान में ज़िन्दगी का राज़ मिला 

ज़ुल्फ़ों के साये में मुझे मेरा हमराज़ दिखा  
दुखः की घड़ी में मेरा साथी बेक़रार मिला 

तेरे झगड़ों में मैंने तेरा आत्मविश्वास देखा 
लुत्फ़ भी आया अपनेपन का साज़ मिला 

बड़े ख़ुशनसीब हूँ मैं कि तुम्हारा प्यार मिला 
बड़े मुद्दत के बाद तुम जैसा कोई यार मिला 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”



Saturday 3 June 2017

A-280 तेरा मुस्कुराना 3.6.17--10.21 PM

A-280 तेरा मुस्कुराना  3.6.17--10.21 PM

तेरा मुस्कुराना 
गले से लग जाना 
बातें करते जाना 
जैसे कल की बात हो 

तेरा आँखों को चुराना
थोड़ा सा शर्माना
ख़ुद को छिपाना
जैसे कल की बात हो 

पहली मुलाक़ात में 
थोड़ा सा कतराना
फिर धीरे धीरे आना 
जैसे कल की बात हो

आग़ोश में गिरना 
गिर के संभलना 
थोड़ा सा मचलना 
जैसे कल की बात हो

बात बात पर बिगड़ना
ख़ुद के दोष मढ़ना 
ग़ुस्से भी दिखाना 
जैसे कल की बात हो

प्यार ख़ूब जताना 
चूम चूम बताना 
माफ़ी इज़हार करना 
जैसे कल की बात हो
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Thursday 1 June 2017

A-277 हँसते हँसते 29.5.17--4.50 AM

A-277 हँसते हँसते 29.5.17--4.50 AM

हँसते हँसते कह जाते हैं हर वो बात 
नहीं कहनी थी पर बन गयी उलझन 
वही फँसी होती उलझन में हर रात 
एक पुरानी तस्वीर व छोटी सी बात 

हँसते हँसते कह जाते हैं हर वो बात 
उसी पुरानी उल्फ़त में फँसे जज़बात 
नींद को भी इल्म नहीं है उलझन की 
बस उड़ जाती है लेकर वो सवालात 

कसकते दिल को कर देती है बदनाम 
न मिलता शकून और न मिले आराम 
दर्द दिल का उठ के गुहार करता फिरे 
नहीं मिलता फिर भी कहीं कोई विराम 

करना चाहता वो मुकम्मल अपनी बात 
चले आते हैं जज्बात भी कुछ खिलाफ 
दिल के कोने में रखे हैं जो चन्द लम्हें  
आती है पुरानी बात बन एक हवालात 

इतनी पाक हो जाये हर वो मुलाक़ात 
दर्द भी बनकर आये, आये हसीं रात 
दर्द न आये तो सुख की क्या बिसात 
वर्ना कौन पूछे सुख के हसीं जज़्बात 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”