Wednesday 21 June 2017

A-289 न तुम खुदा होते 19.6.17--9.09 PM

A-289 न तुम खुदा होते 19.6.17--9.09 PM

न तुम खुदा होते न हम फ़िदा होते 
चाँद तारे नुमा खुद की जगह होते 

पहली किरण और दमकता चेहरा 
ख़ुशी के आँसू से दे रहे सज़ा होते 

देखते रहते तुझे किसी आलने से 
तेरी चकाचौंध पर हुए फ़ना होते 

चंदा की रोशनी तारों की उलझन 
हम भी करवा रहे कुछ सुलह होते 

पवन बहाव उसकी अदा निराली 
फिकरों की दौरे भी बेवज़ह होते 

हरी मखमली घास सघन जवानी 
मादक अदा होती व हमनवा होते 

बुलबुल की चहक उसकी गायकी 
मधुर अवाज पर हुए फ़िदा होते 

जर्रे जर्रे में पनपता मैंने नूर देखा 
समझ न पाते हो गए फ़ना होते 

तेरे आलम में कहीं हम खो जाते 
ढूँढते रहते और तुम से जुदा होते 

न तुम खुदा होते न हम फ़िदा होते 
न तुम खुदा होते न हम फ़िदा होते 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


No comments:

Post a Comment