Saturday 24 June 2017

A-290 एक मुसाफ़िर 22.6.17-6.52 AM

A-290 एक मुसाफ़िर 22.6.17-6.52 AM

एक मुसाफ़िर की नज़र में बता दे तू कौन है 
खुदा है ज़मीं है हलचल है या कि 
तू मौन है 

हम समझ नहीं पाए तेरा ये करिश्मा 
एक ही सवाल पूछते रहे की 
तू कौन है 

हमने तुमको देखा ग़रीबी की आहट में 
जब उसके मुख से निकले 
तू ही सिरमौर है 

हमने देखा है तुमको भूखों की तड़प में 
एक नवाला मिल जाये 
तो हँसी मौज है 

तुमको देखा है मरीज़ों की तड़प में 
एक बार तू चला आए 
तो ज़िन्दगी कुछ और है 

देखा है तुम्हें वेश्याओं के कोठे पे 
थोड़ा नज़राना मिल जाए 
तो क़ाबिले ग़ौर है 

भटके हुए राही भी इंतज़ार करते है 
पकड़ ले ऊँगली कोई 
वही करता ग़ौर है 

बादशाही में भी झलक मिलती है 
मिल जाए थोड़ा और तो 
भाव विभोर है 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


2 comments:

  1. Even i don't have idea how to appreciate such a great work,chalo alfaaz da ki ah ta ahsas v ban jaunde aksar lipat ke siahi de rang ch
    Awesome likhde o sir

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  2. Thank you so much Akashdeep! Your appreciation inspires me to do my job. My job is to listen to nature and to express the way he wants. Gogia

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