मेरी कलम भी बहुत बेचैन है आज
मेरे हर्फ़ों को ज़रा संभलने तो दो न
बिखर गये हैं गृहस्थी के बोझ तले
मुझे भी गृहस्थी से उबरने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
कौन कहता है कि मैं शायर नहीं हूँ
मेरे हरफ़ों को ज़रा सँवरने तो दो न
दूध और पानी का लेखा भी करूँगा
हर्फों से दो हाँथ ज़रा करने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
मैं बड़े-बड़े शायरों के बीच बैठा हूँ
बज़्म को भी ज़रा संभलने तो दो न
मेरी औक़ात का पता लग जाएगा
शब्दों को मुझे ज़रा मढ़ने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
तेरी रहगुज़र में हमने रात गुज़ार दी
थोड़ा सा क़रीब मुझे रहने तो दो न
तेरे हर सबब से वाकिफ़ हो जायूँगा
हया भी आये तो उसे सहने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
चाँद-तारों को गर परखना चाहते हो
रात को भी आमद हो जाने तो दो न
देखना भी इनके एक-एक इशारे को
फिर इशारों को ज़रा थमने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
इश्क़ आमादा है फ़िदा हो जाने को
हुस्न को भी थोड़ा सँवरने तो दो न
हुस्न भी उभर कर जब सामने आये
ओढ़नी को थोड़ा खिसकने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
नाज़ नख़रे तेरे सभी सह लेंगे हम
असमत को ज़रा निखरने तो दो न
तेरी ख़ुशबू के चर्चे सरे आम होंगे
कली को फूल ज़रा बनने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
कौन कहता है रात अंधेरी होती है
सूरज को ज़रा तुम ढलने तो दो न
रात रोशन होगी सिल्मे सितारों से
महफ़िल को ज़रा जमने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
हर महफ़िल में शमआ रोशन होगी
हुस्नों को जलवे बिखेरने तो दो न
परवानों की नींद हराम हो जाएगी
शमआ को भी ज़रा मचने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
हर शक्स शराबी नज़र आएगा यहाँ
जाम से जाम को खड़कने तो दो न
एक-एक बूँद को पागल भी तरसेगा
जाम की बोतल ख़त्म होने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
सुबह हर कोई अपने होश में होगा
बस नशे को ज़रा उतरने तो दो न
क्या हुआ था किसे होश होगी अब
उनके परों को ज़रा कुतरने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
सारंगी की आवाज़ बेसुरी हो चली
ढीली तार को ज़रा कसने तो दो न
निकलेगी जो तान समा बदल देगी
इसके सुर को भी निखरने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
कौन कितना रोयेगा तेरी मैयत पर
देखना है तो ख़ुद को मरने तो दो न
मर कर देखो ज़िंदगी की हकीकत
लोगों को स्वयं से मिलने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
अश्क़ों को बहाकर भी क्या मिलेगा
लोगों को ज़रा भावुक होने तो दो न
ज़िंदगी का सत्र भी पूरा हो जायेगा
श्वासों की माला बिखरने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
गोगिया बता कितना मज़ा आता है
नशे को दोबारा तुम चढ़ने तो दो न
हिन्दी अंग्रेज़ी में तब्दील हो जाती है
ज़ाम को चकमा ज़रा देने तो दो न
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न
Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’
Excellent. God bless.
ReplyDeleteThank you so much Sangha Saheb for your blessings!
ReplyDeleteDil ki gehrion se
ReplyDeleteकहुतख़ूब हर एक हर्फ़ का विश्लेषण
ReplyDeleteबखूबी बयाँ किया है आपने । आप की कलम
का कमाल मन को भा गया।
Very Very Nice sir
ReplyDeleteDil Ke Kone m kuch kuch h
Aaj yh Mahsus ho raha h.....