Sunday 20 January 2019

A-431 मेरी कलम 20.1.19--3.11 AM


मेरी कलम भी बहुत बेचैन है आज 
मेरे हर्फ़ों को ज़रा संभलने तो दो न 
बिखर गये हैं गृहस्थी के बोझ तले
मुझे भी गृहस्थी से उबरने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न 

कौन कहता है कि मैं शायर नहीं हूँ 
मेरे हरफ़ों को ज़रा सँवरने तो दो न 
दूध और पानी का लेखा भी करूँगा
हर्फों से दो हाँथ ज़रा करने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

मैं बड़े-बड़े शायरों के बीच बैठा हूँ 
बज़्म को भी ज़रा संभलने तो दो न 
मेरी औक़ात का पता लग जाएगा 
शब्दों को मुझे ज़रा मढ़ने तो दो न  
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

तेरी रहगुज़र में हमने रात गुज़ार दी 
थोड़ा सा क़रीब मुझे रहने तो दो न 
तेरे हर सबब से वाकिफ़ हो जायूँगा 
हया भी आये तो उसे सहने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

चाँद-तारों को गर परखना चाहते हो 
रात को भी आमद हो जाने तो दो न 
देखना भी इनके एक-एक इशारे को 
फिर इशारों को ज़रा थमने तो दो न  
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

इश्क़ आमादा है फ़िदा हो जाने को 
हुस्न को भी थोड़ा सँवरने तो दो न
हुस्न भी उभर कर जब सामने आये 
ओढ़नी को थोड़ा खिसकने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

नाज़ नख़रे तेरे सभी सह लेंगे हम 
असमत को ज़रा निखरने तो दो न 
तेरी ख़ुशबू के चर्चे सरे आम होंगे 
कली को फूल ज़रा बनने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

कौन कहता है रात अंधेरी होती है 
सूरज को ज़रा तुम ढलने तो दो न 
रात रोशन होगी सिल्मे सितारों से 
महफ़िल को ज़रा जमने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

हर महफ़िल में शमआ रोशन होगी 
हुस्नों को जलवे बिखेरने तो दो न 
परवानों की नींद हराम हो जाएगी 
शमआ को भी ज़रा मचने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

हर शक्स शराबी नज़र आएगा यहाँ 
जाम से जाम को खड़कने तो दो न 
एक-एक बूँद को पागल भी तरसेगा 
जाम की बोतल ख़त्म होने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

सुबह हर कोई अपने होश में होगा 
बस नशे को ज़रा उतरने तो दो न 
क्या हुआ था किसे होश होगी अब 
उनके परों को ज़रा कुतरने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

सारंगी की आवाज़ बेसुरी हो चली  
ढीली तार को ज़रा कसने तो दो न 
निकलेगी जो तान समा बदल देगी 
इसके सुर को भी निखरने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

कौन कितना रोयेगा तेरी मैयत पर 
देखना है तो ख़ुद को मरने तो दो न 
मर कर देखो ज़िंदगी की हकीकत 
लोगों को स्वयं से मिलने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

अश्क़ों को बहाकर भी क्या मिलेगा 
लोगों को ज़रा भावुक होने तो दो न 
ज़िंदगी का सत्र भी पूरा हो जायेगा 
श्वासों की माला बिखरने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   

गोगिया बता कितना मज़ा आता है 
नशे को दोबारा तुम चढ़ने तो दो न 
हिन्दी अंग्रेज़ी में तब्दील हो जाती है 
ज़ाम को चकमा ज़रा देने तो दो न 
मेरे दिल को ज़रा मचलने तो दो न   


Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’


5 comments:

  1. Thank you so much Sangha Saheb for your blessings!

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  2. कहुतख़ूब हर एक हर्फ़ का विश्लेषण
    बखूबी बयाँ किया है आपने । आप की कलम
    का कमाल मन को भा गया।

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  3. Very Very Nice sir
    Dil Ke Kone m kuch kuch h
    Aaj yh Mahsus ho raha h.....

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