Monday 31 December 2018

A-430 नववर्ष 1.1.2020--3.14 AM






किस नववर्ष की बात करते हो जिस पर तुम हर साल मरते हो 
वही है न जो हर साल आता है और सिर्फ ख़ुद को दोहराता है 

सूर्य भगवान से मिल कर पूछा कि उनको कैसा मज़ा आता है 
तो वो बड़े आशर्यचकित होकर बोले कि यह कैसे हो जाता है 

युग बीत गए पर मेरा एक वर्ष न आया यहाँ कैसे बन जाता है 
इसके लिए तो पुराना छोड़ना जरुरी है यहाँ कैसे ठन जाता है 

न मुझको छुट्टी मिले न बोनस बस यही विधि यही विधाता है
चक्र लगाता जाऊँ निरन्तर और मेरा तो बस इतना ही नाता है 

मैंने कुछ सोच-कर हवा से पूछा कि नया साल कैसे मनाती हो 
यह क्या होता है मुझे नहीं मालूम लगता तुम मनुष्य प्रजाति हो 

मेरा काम निरंतर जीवन देना है और एक पल भी विश्राम नहीं है 
मनुष्य को भी हर पल जीवन दिया पर इसका कोई नाम नहीं है 

ढूँढ लेता है नित्य नया बहाना नई खुशियों को ढूंढने की खातिर 
भूल जाता है कि अथाह जीवन मिला फिर भी  बनता है शातिर 

मैंने सोचा इन्सां से पूछूं तो एक भिखारी से ही मैंने पूछ लिया 
कौन सा नया साल बाबू, कम्बल दे दो और उसने रुख लिया 

यही प्रश्न जब मैंने किसी दरिद्र से पूछा बोला थोड़ा सोच के 
हम तो जीते जीवन की खातिर वह भी बिना किसी संकोच के 

एक नारी से पूछा जो रोज़ सुबह परिवार के लिए उठ जाती है 
पहले बोरिया बिस्तर समेटती नहाने से पहले ही थक जाती है 

क्या रखा है नये पुराने सब आधार हैं अलग-अलग किरदार के 
छोड़ कर देख कैसे मिले, बिना उम्मीद बिना किसी इंतज़ार के 

हर ख़ुशी तेरे अन्दर है मनाने को भला क्यों कहीं चला जाता है 
सहज़ स्वीकृती में मिले सारी ख़ुशियाँ क्यों भूल भला जाता है 

एक दूसरे के सुख दुःख को देखो मिल बाटों अपने मनुहार से 
नित्य नया वर्ष है जब भी मिल बैठो जब भी बैठो तुम प्यार से 

Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’




2 comments:

  1. Bahu ही सुन्दर कविता है सर अति सुन्दर अति सुन्दर

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  2. Thank you so much for your wonderful comments! Gogia

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