तुम्हीं बताओ क्यों कर तुम इतना सताते हो
तुम क्या जानो जब बुलाकर नहीं बुलाते हो
क्या गुजरती है जब पास से गुजर जाते हो
इम्तिहां लेते हो जब तुम मेरे नेक इरादों का
कितना जुर्म करते हो व् कितना तड़पाते हो
तब कहीं जाकर थोड़ा-थोड़ा करीब आते हो
तुम्हीं बताओ क्यों कर तुम इतना सताते हो
तन्हाई भी जब मुझको झिंझोड़ रही होती है
तेरा इंतज़ार आँखों को सिकोड़ रही होती है
तेरे ख्यालों की झड़ी भी जब तड़प उठती है
तब तो कहीं उम्मीद भी दम तोड़ रही होती है
बात-बात में तुम मुझ पर एहसान जताते हो
तुम्हीं बताओ क्यों कर तुम इतना सताते हो
एक रात हम गहरी नींद में बेख़बर सो रहे थे
सपने में सनम तेरी बाँहों में तुम्हारे हो रहे थे
तुमने बताया कि यह तो महज दीवानगी है
तुम तो रिश्तों की आड़ में रिश्ता ढो रहे थे
ऐसी बातें कर-कर के फिर भी मुस्कुराते हो
तुम्हीं बताओ क्यों कर तुम इतना सताते हो
एक रात छिपम-छिपाई में चाँद खो गया था
घने बादलों के बीच कहीं लुप्त हो गया था
बादल भी परेशान थे और अश्क़ ले आये थे
उनको भी अच्छे लगते हो तुम इतना भाये थे
क्यों मुझसे दूर रहकर इतने खेल रचाते हो
तुम्हीं बताओ क्यों कर तुम इतना सताते हो
Poet: Amrit Pal Singh Gogia
बहुत खूब।
ReplyDeleteधीरे धीरे दूर होते गये, वक़्त के आगे मजबूर होते गये, हम बेवफा ओर वो बेकसूर होते गये..