हर दुविधा में मेरा साथ निभाती है
मेरे कष्टों में रह स्वयं कष्ट होकर
अपना फ़र्ज़ भी निभा कर जाती है
माँ नहीं है पर माँ फिर भी आती है
सपनों में लड़ती है डांट पिलाती है
डांट पिलाकर खुद वो मुस्कुराती है
मुझे वह अब भी बच्चा समझती है
जब कि खुद तो दादी कहलाती है
माँ नहीं है पर माँ फिर भी आती है
आँचल में छुपा कोई गीत गाती है
न जाने शायद वह लोरी सुनाती है
शायद वो कोई चुप का गीत होगा
या चुप रहने का आदेश सुनाती है
माँ नहीं है पर माँ फिर भी आती है
अगर दिख जाये कभी उदास चेहरा
मुझे वह अपनी छाती से लगाती है
प्यार से पुचकारकर मीठी लोरी से
मुझे अगवा कर मुझको सुलाती है
माँ नहीं है पर माँ फिर भी आती है
मेरे हर कष्ट पर आँसू वो बहाती है
हर कष्ट को हर के लाड लडाती है
जब कभी भी मैं दुविधा में होता हूँ
मेरी गुत्थियों का हल बन जाती है
माँ नहीं है पर माँ फिर भी आती है
Poet: Amrit Pal Singh Gogia
🙏Mother's are always like that, always showing the right path nd helpful.Miss you Matajee🙏
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ReplyDelete🙏
ReplyDeleteबड़ी इबादत से पुछा था मैंने खुदा से जन्नत का पता,
तो अपनी गोद से उतारकर खुदा ने माँ की बाहों में सुला दिया !!
Thank you so much Arora Saheb for your wonderful Expression. Gogia
Delete👍👍
ReplyDeleteThank you so much for your wonderful feed back. Gogia
ReplyDelete🙏👍
ReplyDeleteThanks
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