Sunday 23 December 2018

A-427 अधर 23.12.18--11.59 PM


तेरे अधरों पर अधर रखने की मैं बात कहूँ 
अपने होने की प्रक्रिया है या जज़्बात कहूँ 
अधरों से शुरु होता है ग़र हमारा ये रिश्ता 
इसको बंधन कहूँ या कि इसको प्यार कहूँ 

तुमसे रूबरू होते ही तुम्हारा हो जाऊँ अगर 
इसको मोहब्बत कहूँ पहली मुलाक़ात कहूँ 
नतीज़ा जो भी हो वह देखा जायेगा अंततः 
किस अंज़ाम तक जाने को ज़िद्दी बात कहूँ 

दिल की हर बात आज मैं कह देने वाला हूँ  
दूरी अब न सहूँगा तेरे संग ही रहने वाला हूँ 
तुम मेले में खो जाओ तो भी वो मेरा मुकद्दर 
ढूँढ लाऊँगा मैं बस इतना ही कहने वाला हूँ

क्यों कर मौक़ा दूँ मैं अब किसी मजबूरी को
क्यों मैं बल दूँ अब किसी ज़िस्मानी दूरी को 
अधर ही हैं दिल की हर बात को समझते हैं 
क्यों न इसकी मानूँ क्या पता यही जरुरी हो 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia

4 comments:

  1. Wow

    क्यूँ करते हो मुझसे इतनी ख़ामोश मुहब्बत..
    लोग समझते है इस बदनसीब का कोई नहीँ..

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