Monday 3 December 2018

A-421 कौन हो 4.12.18—2.31 A

कौन हो तुम स्वयं को जानो तो सही 
स्वयं करीब आकर पहचानो तो सही 

ख़ुद ज्वालामुखी से मिलकर तो देखो 
स्वयं की बाँहों से लिपटकर तो देखो 

ऐसा नहीं है की सिर्फ हम चाहते हैं 
हम तुच्छ मगर फिर भी समझाते हैं 

लोग तरसते हैं आग़ोश में आने को 
वक़्त लगता है इसे समझ पाने को 

मुकद्दर अगर बनाना चाहते हो सही 
वासना पर दक्षता दिखाओ तो सही 

बेशक़ सुन्दरता हो नाज़नीन हो सही 
दिल की सुनो और सुनाओ तो सही  

हाले दिल ख़ुद का ख़ुद बयां करना
किसी के रोके किसी से नहीं डरना 

ज़िन्दगी तुम्हारी तुम पर मुनस्सर है 
कभी खुद पर अत्याचार नहीं करना 

आओ आज स्वयं को गले लगाते हैं 
देखो पल-पल भी कैसे मुस्कुराते हैं 

जिन हसीन सपनों की चाह थी तेरी 
देखो कैसे वो खुद तुमको बुलाते हैं  


Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’

3 comments:

  1. आप का एक और नगीना पसंद आया।

    ये याद है तुम्हारी या यादों में तुम हो,
    ये ख्वाब हैं तुम्हारे या ख्वाबों में तुम हो,
    हम नहीं जानते हमें बस इतना बता दो,
    हम जान हैं तुम्हारी या हमारी जान तुम हो।

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