ज़िंदगी के मसले भी अजीब होते हैं
बिना रिश्तों के रिश्ते क़रीब होते हैं
रिश्तेदारी में दूरी क्यों बढ़ जाती हैं
जब कि वही सबसे अज़ीज होते हैं
जो अजीज़ होते हैं वो नसीब होते हैं
अपने हों पराये हों पर करीब होते हैं
वक़्त रहते समझ में आ जाये अगर
जज़्बातों से मुक्त बे-तरतीब सोते हैं
लोग दिखावे झूठे आनंद में होते हैं
दिखाते हैं कि वो गहन नींद सोते हैं
दिख जाता है उनके तौर तरीकों से
सच है कि वाक़ई तजुर्बेहीन होते हैं
सच के साये जब भी नसीब होते हैं
वही क्षण सबसे खुशनसीब होते हैं
आओ क्षण भर ही रहकर देखो तो
दूर रहकर हम कितने अमीर होते हैं
झूठ ग़र सच के दायरे में होता हो
हम देखेंगे झूठ वो कब तक ढोते हैं
झूठ की मालिश भी जो दिख जाये
एक-एक करके खिसक रहे होते हैं
सच पूछो झूठ की औकात क्या है
बिस्तर-बिछौने भी बिक रहे होते हैं
कब तक सही झूठा नक़ाब पहनेगा
ज़नाब नुक्कड़ों में दुबक रहे होते हैं
Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’
लाज़वाब बहुत ही खूबसूरत बयां किया है ज़िन्दगी के हर पहलू को। वाक़ई किसी भी लम्हे का विश्लेषण करने से आप नहीं चूके।
ReplyDeleteक़ायल हैं आप की इसी अदा पे।