अब के ना बाजो पायलिया
मोरे कान्हा घर नहीं आओ रे
जाके कारन निंदिया बिसारी
आकर मोहे नहीं जगाओ रे
अब के ना बाजो पायलिया
मोरे कान्हा घर नहीं आओ रे
जिसकी पदचाप से धड़के जीया
आज कुछ नहीं धड़काओ रे
अब के ना बाजो पायलिया
मोरे कान्हा घर नहीं आओ रे
जिसकी सुगन्ध करे मोहे आतुर
आज आतुरता नहीं आओ रे
अब के ना बाजो पायलिया
मोरे कान्हा घर नहीं आओ रे
जिसके आये जगत होए चंदा
चंदा को कौन छिपाओ रे
अब के ना बाजो पायलिया
मोरे कान्हा घर नहीं आओ रे
जिसके आवे संगीत त्वरित हो
कोई धुन नहीं सुन पाओ रे
अब के ना बाजो पायलिया
मोरे कान्हा घर नहीं आओ रे
जिसके बिना वीणा सूनी
कोई सुर नहीं लगाओ रे
अब के ना बाजो पायलिया
मोरे कान्हा घर नहीं आओ रे
श्याम वर्ण है जिसकी अंगिआ
आज वर्ण नहीं भाओ रे
अब के ना बाजो पायलिया
मोरे कान्हा घर नहीं आओ रे
अँखियन ठहरी और बरस गयी
आकर चुप नहीं कराओ रे
वो देखो आये मोरे कान्हा
खूब पायलिया बाजो रे
अखियाँ तरसी तरस गयी
अब तो कान्हा साजो रे
वो देखो आये मोरे कान्हा
खूब पायलिया बाजो रे
Poet: Amrit Pal Singh Gogia
Very nice. Enjoyed the poem till end.
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