तुम जहाँ जहाँ गये कोई निशानी छोड़ आये कि नहीं
अज़ीब है बिछुड़ने और मिलने की शृंखला दुनिया में
इसी शृंखला में किसी को अपना बना पाये कि नहीं
हार एवं जीत की अपनी जगह कोई निश्चित नहीं है
इसी बीच तुम अपना कोई मुक़ाम बना पाये कि नहीं
चलते हुए तुम भी पहुँच जाओगे ज़िन्दगी के उस छोर
जहाँ अपना कोई नहीं फिर भी घरौंदा बनाये कि नहीं
जब कभी जनगणना होगी नाम तुम्हारा भी तो आयेगा
इतनी बड़ी भीड़ का हिस्सा बनकर भी घबराये तो नहीं
जरुरत तो सिर्फ इतनी है हम किसी के काम आ सकें
जरुरत है कि किसी की बगिआ महका पाये कि नहीं
Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’
Very inspiring good ji keep it up
ReplyDeleteGod bless you
Thank you so much Baltar for your wonderful feed back! Gogia
ReplyDeletevery nice an inspiring..Thank you
ReplyDeleteThank you so much for your wonderful feed back! Gogia
ReplyDeleteआज का बहुत ही ज्वलंत विषय। मैने अपनी आंखों से स्वये देखा है वृद्ध आश्रम में, सुनी हैं वृद्धों की जुबानी उनके दिलों के फफोले।दिल रो उठता है जब नाम आंखों बयां करते हैं अपनी व्यथा।जो मजबूर हैं तकदीर से, रोते हैं काश हमारा कोई बेटा होता तो आज हमारा यह हाल ना होता।, पर जो दो या तीन बेटों के होते वृद्ध आश्रम की तलाश मैं भटकते देखा। उनके हृदय की चीख सुनी और बद्दुआएं "इस से तो अच्छा होता हम बेऔलाद होते"
ReplyDeleteआप का प्रयास क़ाबिले तारीफ है।
आज का बहुत ही ज्वलंत विषय। मैने अपनी आंखों से स्वये देखा है वृद्ध आश्रम में, सुनी हैं वृद्धों की जुबानी उनके दिलों के फफोले।दिल रो उठता है जब नाम आंखों बयां करते हैं अपनी व्यथा।जो मजबूर हैं तकदीर से, रोते हैं काश हमारा कोई बेटा होता तो आज हमारा यह हाल ना होता।, पर जो दो या तीन बेटों के होते वृद्ध आश्रम की तलाश मैं भटकते देखा। उनके हृदय की चीख सुनी और बद्दुआएं "इस से तो अच्छा होता हम बेऔलाद होते"
ReplyDeleteआप का प्रयास क़ाबिले तारीफ है।
Thank you so much Arora Saheb for descriptive expression! Gogia
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