Saturday 9 March 2019

A-447 तेरा आँचल 8.3.19--7.57 AM

तेरा आँचल जो खिसका उड़ा ले गया 
मेरे होशो हवास निंदिआ भगा ले गया 
नज़र भी टिकी नहीं फ़िसलन बड़ी थी 
बदहवासी में कोई और मज़ा ले गया 
बताओ मुझे कोई क्या दे गया!

तेरी ज़ुल्फ़ों ने घेर ली कायनात सारी 
मुझसे ही दूर कोई मेरा जहां ले गया 
बदरिआ में ढूँढू कैसे मैं वस्ल की रात 
मैं ढूंढता रहा कि तुमको कहाँ ले गया 
बताओ मुझे कोई क्या दे गया!

तेरे होंठों के पहलुओं को बिखरता देख 
खनकती हंसी का राज राजदां ले गया 
हम तो तेरी हँसी के फव्वारों में खो गए
कोई हमसे हमारा अंदाजे बयां ले गया
बताओ मुझे कोई क्या दे गया!
तेरी उल्फ़त में उलझे-उलझे से रहे हम 
ऐसे में कोई सब्र का इम्तिहान ले गया 
हम भी मुसल्सल बहुत परेशानी में रहे 
रात की तन्हाई और इत्मीनान ले गया 
बताओ मुझे कोई क्या दे गया!

तय कर लिया जब कि सब्र से देख लें 
कमर का लचका सब्र को उड़ा ले गया 
सारा जहाँ बेअदब उमड़ रहा तमाशे को 
यह उनका उमड़ना मुझको कहाँ ले गया 
बताओ मुझे कोई क्या दे गया!

तेरे रसीले होठों ने मुझसे की है साजिश
मुआ मेरी ही जुबान से देख जुबां ले गया  
हम उलझे रहे मुसल्सल कि फिर आओगे 
हम चल दिए उसके संग वो जहाँ ले गया 
बताओ मुझे कोई क्या दे गया!

तेरी एक अंगड़ाई ने मुझे बेबस कर दिया 
मेरे मन का चैन बेबस कोई कहाँ ले गया 
रास्ता अब किसी सूरत और बचा ही नहीं 
हमने खुद ही कह दिया कि फलां ले गया 
बताओ मुझे कोई क्या दे गया!

Amrit Pal Singh ‘Gogia’

8 comments:

  1. क़ुदरत का करतब है ! होश व बेहोश के बीच !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks Manjeet for your appreciations. It inspires me. Gogia

      Delete
  2. Wonderful poetry gogia ji .Ur thoughts are becoming more younder.Keep it up.

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब गोगिया जी। आपके विचार बहुत ही आकर्षक व यौवन पर हैं।

    ReplyDelete