Saturday 16 March 2019

A-449 परिंदा 17.3.19--3.34 AM


प्यार करो तो ऐसे जैसे एक परिंदा हो 
एक मर जाये दूसरा अभी भी ज़िंदा हो 
बैठा इंतज़ार में कि कब उठकर बैठेगा 
उसे लग रहा जैसे कि रूठ कर बैठा हो 

तड़पता भागता हो मदद माँगता फिरे 
कभी यहाँ पर गिरे कभी वहाँ पर गिरे 
होश उसे अपने सिंगार कपड़ों की नहीं 
वो तो खुदा से भी इंसाफ़ माँगता फिरे 

नहीं नसीब उसके लगता कोई मुक़ाम 
हर मुक़ाम पर नया मुक़ाम ढूँढता मिले 
थक हार कर जब गिर बैठा जिस ज़मीं 
वही ज़मीं भला कैसे आसमान से मिले 

गिरे ज़मीं पर तो आँसू भी पुख़्ता हो गये
अब तो वहीं मिलेंगे जहाँ आसमाँ मिले 


Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’

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