Friday 28 February 2020

A-493 ढोंग 22.2.2020--2.03 AM

बहुत कमाया बहुत खाया 
अब किसके लिए कमाना है। 
बृद्ध अवस्था अब जाग उठी 
अब किसको और जगाना है। 

राम-नाम का धन है थोड़ा 
इसको और बढ़ाना है। 
जिनसे थोड़ी रंजिश अब तक 
उस रंजिश को निपटाना है। 

बहुत निकल गया दिन हैं थोड़े 
ख़ुद को ये समझाना है। 
प्यार की महिमा घर-घर गूंजे 
उसको अब अपनाना हैं। 

इन्सां को तुम इन्सां समझो 
सबसे बड़ा ये तराना है। 
वयोवृद्ध अपने घर पर रहें 
उनके घर को सजाना है। 

माफ़ी माँगे अब सारे जग से 
दिल न किसी का दुखाना है। 
पाली अब तक बहु ढोंग रचा 
अब ढोंग से पल्ला छुड़ाना है। 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

Wednesday 26 February 2020

A 494 इंतज़ार 26.2.2020--8.00 AM

बड़ी मुद्दत से इंतज़ार कर रहे 
हम तुम्हारे चले आने का 
सचमुच आओ सपनों में 
आओ आकर हमें जगाने का 

रिवाज पुराना हो चला अब 
चिट्ठियों के आने जाने का 
वक़्त कहाँ मिलेगा तुमसे 
अब मिलने और मिलाने का 

तरसती निगाहें सूनी राहें 
तब भी खलकत के आने का 
सावन की बदरी भी आये 
और ठंडी फुहार के आने का 

बगिया में फूल खिले हों जब 
तब भवरों के मँडराने का 
ठंडी-ठंडी पुरवा चले और 
तेरा आकर सिमट जाने का 

दिल को थोड़ी ठंडक पहुँचे 
तुम्हारा फिर मिल जाने का 
'पाली' करेगा इंतज़ार भी 
उस वक़्त के बेवक्त आने का 

जिसमें आनन्द भरा होगा 
हँसने-खेलने व मुस्कुराने का 

 अमृत पाल सिंह 'गोगिया'