बहुत कमाया बहुत खाया
अब किसके लिए कमाना है।
बृद्ध अवस्था अब जाग उठी
अब किसको और जगाना है।
राम-नाम का धन है थोड़ा
इसको और बढ़ाना है।
जिनसे थोड़ी रंजिश अब तक
उस रंजिश को निपटाना है।
बहुत निकल गया दिन हैं थोड़े
ख़ुद को ये समझाना है।
प्यार की महिमा घर-घर गूंजे
उसको अब अपनाना हैं।
इन्सां को तुम इन्सां समझो
सबसे बड़ा ये तराना है।
वयोवृद्ध अपने घर पर रहें
उनके घर को सजाना है।
माफ़ी माँगे अब सारे जग से
दिल न किसी का दुखाना है।
पाली अब तक बहु ढोंग रचा
अब ढोंग से पल्ला छुड़ाना है।
अमृत पाल सिंह 'गोगिया'