Monday 28 March 2016

A-036 एक नयी सुबह 29.3.16—4.57 AM



एक नयी सुबह 29.3.16—4.57 AM 

एक नयी सुबह ने आगाज किया 
हाँ!.....एक नयी सुबह ने……! 

पहली किरण पाँव रखने को थी 
मस्त पवन थोड़ी बहकने को थी 

रात की चादर सरकने को थी 
चाँदनी भी थोड़ी सिमटने को थी 

एक नया संगीत बिखरने को था 
कुदरत का नृत्य थिड़कने को था 

आशाओं का गीत चहकने को था  
अदाओं का ताण्डव बहकने को था 

फूलों के महक की बात निराली थी 
रंगों की छटा भी थोड़ी मतवाली थी 

इन सबके बीच एक जगह खाली थी 
बात पते की थी पर बात मवाली थी 

मूक बनी शिला आज भी तटस्थ थी 
अटल सम्पत्ति चाहे थोड़ी धवस्त थी 

आन शान आज भी ज्यों की त्यों थी 
आज मस्त थी पर पता नहीं क्यों थी 

बहुत सुबह देखी है उसने जी भरके 
फिर भी इंतज़ार है रोज सुबह तड़के 

एक नयी सुबह ने आगाज किया 
हाँ!.....एक नयी सुबह ने……! 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Sunday 20 March 2016

A-124 बहुत अच्छे दिन 21.3.16—7.36 AM


A-124 बहुत अच्छे दिन 21.3.16—7.36 AM 

बहुत अच्छे दिन जो हमने गुजारे हैं 
न कभी हम जीते थे न कभी हारे हैं 

तुमने जो भी दिया खेल जिंदगी में 
हम रहे तो केवल उसी के सहारे हैं 

जिंदगी में कठिनाइयाँ भी खूब रहीं  
पैगाम तेरे हमने वैसे ही निस्तारे हैं 

तुमने जो भी दिया मुझे पसंद रहा 
हमने तो उसी में हर पल संवारे हैं 

सूखा-गीला सबकुछ देखा है हमने 
तेरी रज़ा में दिन भी अच्छे गुज़ारे हैं 

तेरे हर दिए का एहसास बहुत है 
तुमने जो दिया वही दिन हमारे है 

शुक्र है तेरा कि तुम मेरे पिता हो 
कैसे दृष्टि है कि हम तेरे प्यारे हैं 

किसी बात की चिंता न डर कोई 
तू मेरा है हम तो बस तेरे सहारे हैं 

चढ़दी कला में हूँ तेरा ही सहारा है
मद्द मस्ती के रंग भी सारे तुम्हारे हैं  

बहुत अच्छे दिन जो हमने गुजारे हैं 
न कभी हम जीते थे न कभी हारे हैं 



Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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Friday 18 March 2016

A-141 सोलह सिंगार किये 17.3.16—2.24 AM

A-141 सोलह सिंगार किये 17.3.16—2.24 AM 

सोलह सिंगार किये फूलों का हार लिए 
घूँगट की छाँव में बिखरी अदाओं में 
दिल में मनुहार लिए मौसम को साथ लिए 
थोड़ी सी बौछार किये एक सुबह मुस्कुराई है 
बधाई है! बधाई है! कविता भी आई है 

लश्कर अदाओं का महकती फिजाओं का 
हर पटल खिला हुआ सिन्दूर से सिला हुआ 
मोतियों से सजा हुआ खुदा संग रजा हुआ 
पवन भी चरमराई है न रुस्वा न रजाई है 
बधाई है! बधाई है! कविता भी आई है 

कैसी ये बहार है फिजा को दरकार है 
ठंडी हवाओं का नमन स्वीकार है 
मखमली दूब तले हो रहा विस्तार है 
देखो वो कैसे दबे पाँव आई है 
बधाई है! बधाई है! कविता भी आई है

कुदरती संगीत का हर पल झंकार है 
हर एक करिश्मा है सुन्दर ये आकार है 
इनके पीछे छुपा मेरा कलाकार है 
धुन भी देखो कैसी बन आई है 
बधाई है! बधाई है! कविता भी आई है



Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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