सोलह सिंगार किये फूलों का हार लिए
घूँगट की छाँव में बिखरी अदाओं में
दिल में मनुहार लिए मौसम को साथ लिए
थोड़ी सी बौछार किये एक सुबह मुस्कुराई है
बधाई है! बधाई है! कविता भी आई है
लश्कर अदाओं का महकती फिजाओं का
हर पटल खिला हुआ सिन्दूर से सिला हुआ
मोतियों से सजा हुआ खुदा संग रजा हुआ
पवन भी चरमराई है न रुस्वा न रजाई है
बधाई है! बधाई है! कविता भी आई है
कैसी ये बहार है फिजा को दरकार है
ठंडी हवाओं का नमन स्वीकार है
मखमली दूब तले हो रहा विस्तार है
देखो वो कैसे दबे पाँव आई है
बधाई है! बधाई है! कविता भी आई है
कुदरती संगीत का हर पल झंकार है
हर एक करिश्मा है सुन्दर ये आकार है
इनके पीछे छुपा मेरा कलाकार है
धुन भी देखो कैसी बन आई है
बधाई है! बधाई है! कविता भी आई है
Poet: Amrit
Pal Singh Gogia “Pali”
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