Saturday 12 March 2016

A-128 मैंने अपने हाथों से 12.3.16—10.46 AM

A-128 मैंने अपने हाथों से 12.3.16—10.46 AM  


मैंने अपने हाथों से तुझको रुख़सत किया 
फिर क्यूँ इंतज़ार है तेरे आने का 

सिलवटें हज़ार सही पर थी तो अपनी ही 
फिर क्यूँ  इंतज़ार है उनको मिटाने का 

हर साल मँझर आयेंगे और फूल खिलेंगे 
फिर क्यूँ  इंतज़ार है उनको रिझाने का 

पसीने से बेज़ार हो रही है जिंदगी 
फिर क्यूँ फ़िक्र है खुद को थकाने का 

बेवफा तुम भी नहीं थे बेवफा हम भी नहीं थे 
फिर क्यूँ इंतज़ार है तुझको भूलाने का 

रास्ते जुदा होने के हमने ही चुने थे 
फिर क्यूँ इंतज़ार है तेरे आने का 

प्यार तो तुमको हम अब भी करते हैं सनम 
फिर क्यूँ इंतज़ार है इसको जताने का 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia 

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