A-060 कैसे इंकार करोगे 29.5.16—5.07 AM
क्या बात करोगे किसकी बात करोगे
वही पुराना कचरा फिर आबाद करोगे
कितना गुमाँ है न तुम्हें अपने होने का
फिर भी कुछ न कुछ फरियाद करोगे
कितना दम भरते हो न अपने होने का
फिर कैसे किसी से मुलाकात करोगे
ख़ुद को भी तुमने कभी जाना ही नहीं
फिर कैसे ख़ुद से कभी प्यार करोगे
औरों की शिकायत में लगे रहते हो
अपनी छोड़ औरों की बात करोगे
सब कुछ औरों से ग्रहण किया है
उनके ही योगदान से इन्कार करोगे
तेरा क्या है जो तुम मान करते हो
वही घिसे-पिटे का इज़हार करोगे
जो इंगित करोगे पुराना ही तो है
कैसे तुम नये का निर्माण करोगे
ख़ुद पर ख़ुद को भरोसा ही नहीं है
किसी पर कैसे तुम एतबार करोगे
ख़ुद से कभी प्यार किया ही नहीं
औरों के संग कैसे इज़हार करोगे
अपनी जुबां पर ताला लगा रखा है
औरों से कैसे तुम वार्तालाप करोगे
बहकते कदमों से पहुंचे हो निर्लज्ज
किसी पुरानी मंज़िल की बात करोगे
शपथ संयम क्रिया कर्म सब पुराने हैं
कुछ नये का कैसे आविष्कार करोगे
याद करो जो पहली बार मिला था
आज भी कैसे उसका इज़हार करोगे
चलो आज हम थोड़े पागल हो जायें
असामान्य होने में ज़रा भी न घबरायें
पद्द चाप सुनेगी औरों से दिल मिलेंगे
तब जाकर कहीं दिल में फूल खिलेंगे
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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