Sunday 22 May 2016

A-073 तुम कहते हो 8.4.16—4.54 PM

A-073 तुम कहते हो 8.4.16—4.54 PM 

तुम कहते हो तुम प्यार करते हो 
इसीलिए मेरा इंतज़ार करते हो 
जब भी मैं तुम्हारे पास आती हूँ 
पता है कैसा व्यवहार करते हो 

सपनों का चीर हरन करते हो 
मुझको अपने वश में करते हो 
जो चाहते हो वही बन जाऊँ मैं 
ऐसा सौदा बार बार करते हो 

दिल के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं 
तुम पूरा-पूरा अपमान करते हो 
हकूमत भी तुम्हारी ही चलती है 
कहते हो तुम सम्मान करते हो 

मेरे दर्द को समझते भी नहीं हो 
मेरे न आने पर सवाल करते हो 
कितने चेहरों संग रहते हो तुम 
जब देखो तभी बवाल करते हो 

इस ख़ौफ़ में भला मैं कैसे रहूँ 
अपने दिल की बात कैसे कहूँ 
तुमको भी समझ नहीं आता है 
इस जुदाई का ग़म मैं कैसे सहूँ 

क्यों मैं इतनी दूर निकल आई हूँ 
जवाब ख़ुद भी नहीं ढूँढ पाई हूँ 
पीछे देखकर बेचैनी होती है मुझे 
क्या बचा है, समझ नहीं पाई हूँ 

मेरा अधूरापन मुझे ही खा रहा है 
मेरा मन आज बहुत पछता रहा है 
क्यों इतना भरोसा कर लिया मैंने 
मेरा भरोसा मुझे ही सता रहा है 

आपका प्यार दो पल की घड़ी है 
आप को बस सिर्फ अपनी पड़ी है 
आप कहते हो ये प्यार की घड़ी है 
दूसरी चाहे जीवित ही मरी पड़ी है 

दूसरे को सता ख़ुद भी तो सहते हो 
क्या आप इसी को प्यार कहते हो 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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