Tuesday 20 December 2016

A-221 मैं तुमको ढूँढता रहा 20.12.16—11.19 AM


A-221 मैं तुमको ढूँढता रहा 20.12.16—11.19 AM

मैं तुमको ढूँढता रहा मंदिर व शिलाओं में 
कहीं छुप बैठे तुम मौसम की फ़िज़ायों में 
झलक मिलती थी सावन की अदायों में 
रिमझिम हो बरसते तुम छुपते घटायों में 

मैं तुमको ढूँढता रहा माँ के सौम्य रूप में 
मातृ नयन अधर मुस्कान सुंदर स्वरूप में 
उसका प्यार बने सघन ममता के रूप में 
बसे हर मन चले बस करुणा स्वरूप में 

मैं तुमको ढूँढता रहा पितृ सघन मन में 
बलिष्ट आलिंगन सुन्दर सुडौल तन में 
उनके चरणों और उनकी धूल कण में 
विशाल काया व समर्पित भूमि रन में 

मैं तुमको ढूँढता रहा गुरुकुल द्वार में 
गुरु चरणों में बसे अहमं निस्तार में 
वर्षों से खड़े हैं एक लंबी कतार में 
समर्पण भाव रख दर्शन व दीदार में 

थक हार बैठा शून्य हो तेरे द्वार पर 
अब किसी पर और न ऐतबार कर 
मिल भी जाये कोई न इजहार कर 
मिले तो सही मगर खुद को हारकर ..

मिले तो सही मगर खुद को हारकर 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia


Sunday 11 December 2016

A-219 तेरे शहर ने 9.12.16--6.21 AM


A-219 तेरे शहर ने 9.12.16--6.21 AM

तेरे शहर ने मुझे यूँ बदनाम किया 
प्यार को मुन्नी बाई का नाम दिया 

हम तो प्यार की लौ लेकर आये थे 
इन्होंने प्यार को भी बदनाम किया 

तेरे शहर ने मुझे यूँ बदनाम किया 

हम तो लोगों का दर्द समेट लेते थे 
लोग पता नहीं क्या समझ लेते थे 

दिलों की मरम्मत का काम किया 
इन्होंने फिर भी यह अंज़ाम दिया 

तेरे शहर ने मुझे यूँ बदनाम किया 

हम तो तेरी खातिर ही यहाँ आये थे 
तुमको देख थोड़ा क्या मुस्कराये थे 

तोहमतें लगा लगा इंतकाम लिया 
तेरे शहर ने मुझे यूँ बदनाम किया

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali” 

Wednesday 7 December 2016

A-218 तमाशबीनों की दुनिया है 8.12.16—5.23 AM

A-218 तमाशबीनों की दुनिया है 8.12.16—5.23 AM

तमाशबीनों की दुनिया है 
तमाशबीनों का शहर है 
कोई छोटा तमाशबीन है 
किसी ने ढाया कहर है 

मैं मैं न रही वो अब वो न रहे 
अब दिल की बात कौन कहे
दिल मेरा अब मुंतशिर भी नहीं   
जज्बा जज्बातों का कौन सहे 

उनके आने से ख़लल होता है 
उनके जाने से उफान आता है 
यह कैसी तस्वीर है तमाशे की 
जैसे मौत का फरमान आता है 

तमाशबीनों की दुनिया है.. तमाशबीनों का शहर है 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Tuesday 6 December 2016

A-217 जब तेरे बारे में सोचता हूँ 6.12.16—7.40 AM

A-217 जब तेरे बारे में सोचता हूँ 6.12.16—7.40 AM

जब तेरे बारे में सोचता हूँ तो अपने नसीब को कोसता हूँ  

तेरे में ऐसा क्या है मेरे रकीब  
मुझमें नहीं और वो तेरे नसीब 

क्यों कर मुझसे बेबफ़ा हो गई  
सरहद पार की व दफ़ा हो गई  

उल्फ़त आलम का यूँ तंग न था 
सुबह क्या हुई कोई संग न था 

ऐसा क्या है जो मुझ में नहीं है 
बहुत है मुझमें है तुझमें नहीं है 

प्यार की लौ टिमटिमाने लगी 
देखता रहा और वो जाने लगी 

एक पल तो बाँहों में शरीक़ थी 
दूजे ही पल वो तेरी तस्दीक़ थी 

जब तेरे बारे में सोचता हूँ तो अपने नसीब को कोसता हूँ 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Monday 5 December 2016

A-216 अंग अंग का 3.12.16—9.27 AM

A-216 अंग अंग का 3.12.16—9.27 AM

अंग अंग का अपना ही काम है
छोटा हो बड़ा हो एक समान है 
एक अंग भी रूठ जाए तो देखो 
सारा शरीर बन जाता बेजान है 

ज़िन्दगी भी अंग के ही समान है 
हर इन्सान का अपना निर्वाण है 
कोई कम और ज़्यादा नहीं होता 
सब की अपनी अपनी पहचान है 

परिवार भी ज़िन्दगी के समान है 
हर सदस्य की अपनी पहचान है 
माता पिता हर घर की धरोहर हैं 
बच्चे फुलवारी भगवन समान हैं 

सदस्य का अपना अपना काम है 
काम से उनकी अपनी पहचान है 
रिश्ते भी बनते उनका भी स्थान है 
सबकी ज़िम्मेवारी ही कराधान है 

एक भी सदस्य गर चूक जाए कहीं 
जीना हो जाता बिलकुल हराम है 
सब अपने अपने काम करते रहें 
वही ज़िन्दगी है और वही धाम है 

वही ज़िन्दगी है और वही धाम है 
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Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Sunday 4 December 2016

A-214 तेरी याद आने लगी है 2.12.16—6.58 AM

तेरी याद आने लगी है  
मुझको सताने लगी है 
महक ताजा हो रही है 
दिल को लुभाने लगी है 

तेरी याद आने लगी है 

ये दूरियां अब कम हों 
कब दूर मेरे ये गम हों 
एक ख्वाब की कमी है 
अब नज़र आने लगी है 

तेरी याद आने लगी है 

हम तुमसे जब मिले थे 
थोड़े सपने भी सिले थे 
थोड़ा एहसास भी हुआ  
तू करीब आने लगी है 

तेरी याद आने लगी है 

सुनहरे सपनों से भरी है 
कोई गीत सुनाने लगी है 
तरन्नुम का एहसास है  
हर शै मुस्कराने लगी है 

तेरी याद आने लगी है 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”