Sunday 30 April 2017

A-269 तुमसे मिलने का 29.4.17--7.52 AM

A-269 तुमसे मिलने का 29.4.17--7.52 AM 

तुमसे मिलने का इक बहाना ढूँढ़ते हैं 
मिल जाओ कहीं वो ठिकाना ढूँढ़ते हैं 
हर आशियाने पे नज़र गड़ाए बैठे हैं 
एक नज़र और वो नज़राना ढूँढ़ते हैं 

ढूँढ़ते हैं तुझको हम फूलों के जिस्म में 
जिस्मों से मिलने का बहाना ढूँढ़ते हैं 
खुशबू बन के बिखर जाये जो महक 
महक के मिलने का ठिकाना ढूँढ़ते हैं 

बहुत ढूँढा तुझको जब तक होश में था 
अब तो बेहोशी में तेरा तराना ढूँढ़ते हैं 
ज़र्रे ज़र्रे से तू वाक़िफ़ है तेरा सरूर है 
वो सरूर वो ज़र्रा वो जनाना ढूँढ़ते हैं 

नींद आ जाये कहीं गर तुझे मक़बूल हो 
सपनों में सही मिलने का बहाना ढूँढ़ते हैं 
हर पौ का इंतज़ार रहता है हर आलम में  
हर पौ में तेरी नज़र का नज़राना ढूँढ़ते हैं 

ढूँढ़ते हैं तुझको फ़िज़ायों के तरन्नुम में 
उनके तरन्नुम में एक ठिकाना ढूँढ़ते हैं 
मिल जाये तो मदहोश हो जाये "पाली" 
“पाली” की मदहोशी का पैमाना ढूँढ़ते हैं 

तुमसे मिलने का इक बहाना ढूँढ़ते हैं 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Thursday 27 April 2017

A-268 इक शाम 28.4.17--5.10 AM

A-268 इक शाम 28.4.17--5.10 AM

इक शाम सुरमई उतर आयी 
बजने लगी हर तरफ शहनाई 
कुछ दीप करवटें बदलने लगे 
हवा ने भी देखो सरगम बजाई  

महक उठी फ़िजा मजबूर होकर 
किसने आकर कैसे नब्ज़ दबाई 
मदहोश हुआ आलम भी बदस्तूर
सिमट गया दामन पकड़ कलाई 

वक़्त बेवक़्त सभी चले आते हैं 
नहीं कोई आतुर लेने को विदाई 
ज़ाम से ज़ाम जब टकराने लगे 
कौन मुसव्विर है कौन हरजाई 

बड़े महफ़ूज़ बड़े इत्मीनान से 
बैठे हैं जैसे उनकी हो रही शगाई 
कतरा-कतरा भी बड़ा महफ़ूज़ है  
उनकी आपस में इतनी बन आयी 

कहाँ छिड़ती हैं बेवाक गुफ़्तगू  
मंदिर हो मस्ज़िद हो या तन्हाई 
सोच में पड़ा इंसान या मुक़द्दर 
न होता मिलन न होती जुदाई 

इक शाम सुरमई उतर आयी 
बजने लगी हर तरफ शहनाई 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"








Tuesday 25 April 2017

A-267 आज मौक़ा मिला 26.4.17--6.22 AM

A-267 आज मौक़ा मिला 26.4.17--6.22 AM

आज मौक़ा मिला मुझे तेरे क़रीब आने का 
क़रीब आते ही मेरी ज़िन्दगी में जान आ गयी 

लगने लगा कि मेरा सपना तो अब पूरा हुआ 
ज़िन्दगी के विराने में एक हसीं शाम आ गयी 

ख़ूब गुज़रेगी अपनी रैना सुनहरे सपनों के बीच 
सपने हसीन होने की वजह मेरे काम आ गयी 

चलो चले अब ज़िन्दगी की किसी नयी डगर पे 
रात गुज़र चुकी और तदबीर भी काम आ गयी 

तेरे हसीन गालों के छूकर हम जो विचलित हुए 
हँसी फ़वारों के बीच वो मोहलत काम आ गयी 

बड़ा गरूर हुआ है मुझे अपनी ही लयाकत पर 
अपने होने के एहसास की हसीं शाम आ गयी

वो हसीन पल जो मकबूल किया तेरे जेहन ने 
तेरी वादों के बीच एक अज़ब अज़ान आ गयी 

आज मौक़ा मिला मुझे तेरे क़रीब आने का 
क़रीब आते ही मेरी ज़िन्दगी में जान आ गयी 

क़रीब आते ही मेरी ज़िन्दगी में जान आ गयी 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Monday 3 April 2017

A-263 बड़ी तरतीब 1.4.17--4.51 AM

A-263 बड़ी तरतीब 1.4.17--4.51 AM 

बड़ी तरतीब से उतरी है ये शाम 
शाम को कहीं उतर जाने तो दो 
खूब सजेगी महफ़िल अपने रंग में 
थोड़ा रंगों को बिखर जाने तो दो 

राग रागिनी एकजुट हो जायेंगे 
इनको थोड़ा करीब आने तो दो 
महफ़िल भी सजेगी संज़ीदा हो 
रागिनी को राग लगाने तो दो 

हर राग का अपना ही मुकाम है 
राग को अपना रंग दिखाने तो दो 
राग सजेंगे, रागों की दुनिया होगी 
हर राग को ज़रा मिल जाने तो दो 

कुछ तुमने कहा कुछ हमने सुनी 
कुछ हमें भी थोड़ा सुनाने तो दो 
राग भोपाली सुनो या अदब का 
थोड़ा हमको भी गुनगुनाने तो दो 

हर हर्फ़ में कमाल का जादू छिपा है 
हर हर्फ़ को वो जादू दिखाने तो दो 
एक एक कर कैसे उसने पिरोया है 
अपना जलवा उसे दिखाने तो दो 

तरतीब भी आज बेतरतीब निकली
थोड़ा उसको भी संभल जाने तो दो 
हम भी यूँ तरतीब से चलेंगे ज़नाब 
थोड़ी तरतीब हमें मिल जाने तो दो 

तबियत उनकी भी थोड़ी नाशाद है  
तबियत थोड़ी सम्भल जाने तो दो 
सारी उम्र यह महफ़िल याद रहेगी 
इक बार ज़ाम छलक जाने तो दो 

रात जवां रुख़सत होने को खड़ी है 
थोड़ा इंतज़ार करो निकल जाने दो
भोर का असर मालूम देता है साक़ी 
भोर को थोड़ा उभर कर आने तो दो 

नयी सुबह भी बेक़रार है आने को 
किरण को सामंजस्य बैठाने तो दो 
चन्द मुवस्सिर ही मशगूल होते हैं 
'पाली' को दिलवर बनाने तो दो 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’

Sunday 2 April 2017

A-262 मेरा प्यार 1.4.17--12.22 AM

A-262 मेरा प्यार 1.4.17--12.22 AM

मेरा प्यार मुझसे जुदा हो गया 
हाय! ये मेरे साथ क्या हो गया

बड़ी शिद्दत से पाला था इसको 
हर पल में संभाला था जिसको 
दिल की हर धड़कन में बसा था 
धड़कन को धोखा कहाँ हो गया 

मेरा प्यार मुझसे जुदा हो गया 
हाय! ये मेरे साथ क्या हो गया

बड़ी बेरहमी से मेरे क़रीब आए
ये बताने कि लो समझ आ गया 
मिलन होता है जुदाई का नग़मा 
लो इस नग़मे का समय हो गया 

मेरा प्यार मुझसे जुदा हो गया 
हाय! ये मेरे साथ क्या हो गया

कैसे भूल जाऊँ कुछ है ही नहीं 
कैसे एकदम ख़याल आ गया 
हक़ है उनको नख़रे जताने का 
नख़रे में कहाँ दिमाग सो गया 

मेरा प्यार मुझसे जुदा हो गया 
हाय! ये मेरे साथ क्या हो गया

हैरान हूँ उनकी तबियत जात पर 
कैसे उनको ये मलाल हो गया 
एक पल मुझसे ज़ुदा न होते थे 
उनके ख़्यालों को क्या हो गया 

मेरा प्यार मुझसे जुदा हो गया 
हाय! ये मेरे साथ क्या हो गया


Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’