Monday 3 April 2017

A-263 बड़ी तरतीब 1.4.17--4.51 AM

A-263 बड़ी तरतीब 1.4.17--4.51 AM 

बड़ी तरतीब से उतरी है ये शाम 
शाम को कहीं उतर जाने तो दो 
खूब सजेगी महफ़िल अपने रंग में 
थोड़ा रंगों को बिखर जाने तो दो 

राग रागिनी एकजुट हो जायेंगे 
इनको थोड़ा करीब आने तो दो 
महफ़िल भी सजेगी संज़ीदा हो 
रागिनी को राग लगाने तो दो 

हर राग का अपना ही मुकाम है 
राग को अपना रंग दिखाने तो दो 
राग सजेंगे, रागों की दुनिया होगी 
हर राग को ज़रा मिल जाने तो दो 

कुछ तुमने कहा कुछ हमने सुनी 
कुछ हमें भी थोड़ा सुनाने तो दो 
राग भोपाली सुनो या अदब का 
थोड़ा हमको भी गुनगुनाने तो दो 

हर हर्फ़ में कमाल का जादू छिपा है 
हर हर्फ़ को वो जादू दिखाने तो दो 
एक एक कर कैसे उसने पिरोया है 
अपना जलवा उसे दिखाने तो दो 

तरतीब भी आज बेतरतीब निकली
थोड़ा उसको भी संभल जाने तो दो 
हम भी यूँ तरतीब से चलेंगे ज़नाब 
थोड़ी तरतीब हमें मिल जाने तो दो 

तबियत उनकी भी थोड़ी नाशाद है  
तबियत थोड़ी सम्भल जाने तो दो 
सारी उम्र यह महफ़िल याद रहेगी 
इक बार ज़ाम छलक जाने तो दो 

रात जवां रुख़सत होने को खड़ी है 
थोड़ा इंतज़ार करो निकल जाने दो
भोर का असर मालूम देता है साक़ी 
भोर को थोड़ा उभर कर आने तो दो 

नयी सुबह भी बेक़रार है आने को 
किरण को सामंजस्य बैठाने तो दो 
चन्द मुवस्सिर ही मशगूल होते हैं 
'पाली' को दिलवर बनाने तो दो 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’

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