Wednesday 23 August 2017

A-311 कौन कहेगा 22.8.17--2.00 AM

A-311 कौन कहेगा 22.8.17--2.00 AM
हुस्न के जब जब चर्चे होंगे 
कौन कहेगा प्यार न कर 
प्यार की भाषा तेरी मंज़िल
कौन कहेगा इकरार न कर 

होंठ रसीले जब टपकेंगे 
कौन कहेगा इज़हार न कर 
हर चुम्बन जब सिहरन लाये 
कौन कहेगा प्यार न कर 

नैनों से तीर जब निकलेंगे 
तरकश भर इज़हार ज़बर
घायल होकर दिल जो तड़पे 
कौन कहेगा प्यार न कर 

श्वांसों की गर्मी जो भा जाये 
कौन कहेगा इंतज़ार न कर 
बाँहों में जो समा जाये सागर 
कौन कहेगा प्यार न कर 

जुल्फों के साये की ठंडक में 
कौन कहेगा आदाब न कर 
उसकी उलझन से क्या होगा 
कौन कहेगा प्यार न कर 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Tuesday 15 August 2017

A-307 ढूँढ रहा हूँ मतलब अब भी 15.8.17--1.49 PM

A-307 ढूँढ रहा हूँ मतलब अब भी  15.8.17--1.49 PM

ढूँढ रहा हूँ मतलब अब भी 
आज़ादी के नारों का 

किसका मतलब कहाँ रह गया 
जैसे खून बहा बन्जारों का 
रक्त रंजीत जब शहीद हुए 
क्या हुआ उनके परिवारों का 

ढूँढ रहा हूँ मतलब अब भी 
आज़ादी के नारों का 

रक्त रंजित जब शहीद हुए 
क्या हुआ माँ के राज दुलारों का 
उनकी व्यथा कौन सुने 
पापा के बच्चे प्यारे का 

ढूँढ रहा हूँ मतलब अब भी 
आज़ादी के नारों का 

हर बचपन रंग भरा करता था 
जोश उमंग हुआ करता था 
कौन सी पतवार किधर ले गयी 
क्या हुआ उन अँगारों का 

ढूँढ रहा हूँ मतलब अब भी 
आज़ादी के नारों का 

जिनकी जिंदगी छलनी हो गयी 
सिंदूर छिना हज़ारों का 
सूनी मांग की लाज़ कौन रखे 
क्या हुआ उत्तम विचारों का 

ढूँढ रहा हूँ मतलब अब भी 
आज़ादी के नारों का 

माँ का आँचल अब भी गीला 
सूखे नयन भ्रम दीदारों का 
दिल की धड़कन कौन बने 
क्या हुआ उनके प्यारों का 

ढूँढ रहा हूँ मतलब अब भी 
आज़ादी के नारों का 

शाषक बदले शाषन वही है 
राज हुआ केवल नमस्कारों का
सब भक्षक मिल खाये खाजा 
शोषण हुआ हज़ारों का 

ढूँढ रहा हूँ मतलब अब भी 
आज़ादी के नारों का 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 

Monday 7 August 2017

A-306 अपना सफ़र 6.8.17-- 10.31 AM

A-306 अपना सफ़र  6.8.17-- 10.31 AM 

न तुझे पाने की तलब है 
न तुझे खोने का सबर है 
तेरी मोहब्बत का जिक्र 
मुझे तो इसका फ़ख़र है 

मैं जानता हूँ मुनासिब नहीं 
हर सहरा में ज़िक्र करना 
कभी अपने वादों की लड़ी 
कभी तुम्हारा फ़िक्र करना 

यह उम्मीदों का साया है 
हो जाता है फ़िक्र करना 
मोहब्बत की फ़ेहरिस्त है 
हो जाता है जिक्र करना 

तेरी मोहब्बत के आईने में 
चाहे मेरी तस्वीर अधूरी है 
वक़्त बुरा न आये तुझपर 
यह बात मुझसे जरुरी है 

मेरी तस्वीर का मुकद्दर भी 
गर तेरे आईने में लिखा हो 
उस आईने को भी तोड़ देना 
चाहे वो तेरी दीप शिखा हो 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”