हुस्न के जब जब चर्चे होंगे
कौन कहेगा प्यार न कर
प्यार की भाषा तेरी मंज़िल
कौन कहेगा इकरार न कर
होंठ रसीले जब टपकेंगे
कौन कहेगा इज़हार न कर
हर चुम्बन जब सिहरन लाये
कौन कहेगा प्यार न कर
नैनों से तीर जब निकलेंगे
तरकश भर इज़हार ज़बर
घायल होकर दिल जो तड़पे
कौन कहेगा प्यार न कर
श्वांसों की गर्मी जो भा जाये
कौन कहेगा इंतज़ार न कर
बाँहों में जो समा जाये सागर
कौन कहेगा प्यार न कर
जुल्फों के साये की ठंडक में
कौन कहेगा आदाब न कर
उसकी उलझन से क्या होगा
कौन कहेगा प्यार न कर
Poet: Amrit Pal Singh Gogia
Thank you so much Surender ji for your wonderful comments!
ReplyDeleteLove is eternal 👌
ReplyDeleteThank you so much Ganga for your wonderful comments!
DeleteThanks again for your inspiration and comments!
ReplyDeleteथम गई है सोच भी
ReplyDeleteथम गई है मंज़िल भी
ना कोई साथी है
ना कोई हमसफ़र
चलना तो है
लेकिन किस ओर
अँधेरे को चीर कर
जाना है कही
लेकिन किस ओर
और क्यूँ ?
जरा ठहरो थाम लो दामन किसी का
ReplyDeleteजो थाम ले दामन वक़्त भी उसी का
नज़रें बचा के वक़्त की ओर तो देखो
जो नज़र डाले यह हो जाता उसी का