Saturday 2 September 2017

A-310 बड़ी तमन्ना थी 18.8.17--9.21 AM

A-310 बड़ी तमन्ना थी 18.8.17--9.21 AM

बड़ी तमन्ना थी कि लोग मुझे जाने 
जानें मेरा नाम मेरे काम से पहचाने 
समंदर के बीच हज़ारों मछलियाँ हैं 
इक बार तो हो जाएं सब मेरे दीवाने 

जब खुद को इस ऊँचाई पर पाया 
जहाँ तक सोचा, वहां तक आया 
कहीं कहीं थोड़ा सकून था मन में 
कहाँ छोटा पप्पू कहाँ ये सरमाया 

पर मैं अब थोड़ा सा उलझ गया हूँ 
नाम का मतलब भी समझ गया हूँ 
कीमत इसकी भी चुकानी पड़ती है 
उसकी ज़िम्मेवारी उठानी पड़ती है 

चिंता है कि अब कहाँ तक जाना है 
इस दायरे को कहाँ तक बढ़ाना है 
मेरी पहुँच से ये बाहर होने लगा है 
यह सब अब किसको दिखाना है 

यह सब अब ये मेरे बस का नहीं है 
उलझन है कम पर बढ़ तो रही है 
दायरा सचमुच बड़ा होने लगा है
थोड़ा फ़िक्र भी अब पिरोने लगा है 

दायरा अब मैं छोटा करना चाहता हूँ 
डरता मैं जरा भी नहीं मैं जताता हूँ 
लोग कहेंगे देखो डर सताने लगा है 
इस बात का डर आड़े आने लगा है 

दायरा अब वाकई छोटा हो रहा है 
थोड़ा सा रुको मुझे कुछ हो रहा है 
नहीं नहीं अब और छोटा मत करो 
पर सब कुछ अपने आप हो रहा है 

अरे रोको इसे नहीं तो मर जायूँगा 
दुनिया को क्या मैं मुँह दिखायूँगा 
इसकी ख़ातिर सारे रिश्ते छोड़े थे 
अपने लोगों से सम्बन्ध भी तोड़े थे 

अब मुझे वो सच नज़र आ रहा है 
अहमियत रिश्तों की दिखा रहा है 
क्यों संग रहे पाली इस माहौल के 
मिलते नहीं रिश्ते पैसों से तौल के 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia



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