आज आसमान में एक तारा खो गया
कैसे ढूँढू ज़िन्दगी का इशारा खो गया
कहाँ से लाऊँ बड़े मज़हब से ढूँढते रहे
आसमां की छत का किनारा खो गया
देखा था उसे समन्दर की लहरों में भी
लहरों के खुद का भार सारा खो गया
उछलती कूदती बेकाबू सी होने लगीं
जैसे सारा जहां उनका हमारा हो गया
किस को बतायूँ अपने दिल की बात
ज़िंदगी का मंझर वो नज़ारा खो गया
जिसकी खातिर जिया करते थे कभी
आज उसी से अपना किनारा हो गया
उतर भी जाते समंदर के गहरे तल पर
धीरे धीरे समंदर का किनारा खो गया
छल ने छल से पैंतरा ही बदल डाला
भरोसे में भरोसे का भ्रम सारा खो गया
किनारे पर बैठकर यूँ ढूँढ़ता रहा “पाली”
जैसे किसी का दर्द अब हमारा हो गया
उनके जाने का ग़म इतना कभी न हुआ
जितना आने से वो ग़म हमारा हो गया
आज आसमान में एक तारा खो गया
Poet: Amrit Pal Singh Gogia
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Thank you so much Sir! for your appreciation and encouragement! Gogia
ReplyDeleteBahut khub.
ReplyDeleteThank you so much for your appreciation!
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteVery very beautiful poem. 👌👍 keep it up Sir
ReplyDeleteThank you so much Neelu! For your wonderful wishes!
DeleteSuperb sir ji
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