चलो आज हम तनहा हो जाएं
एक दूसरे के राजों में खो जाएं
ज़माने से अश्कों को देखा नहीं
आज उसके भी रूबरू हो जाएं
अश्क़ों से ही ज़िंदगी तामील है
थोड़ा सा उनका भी क़र्ज़ चुकाएं
मिल लेते मौका मिला है सज़ग
जाने गम आये कि फिर न आएं
क़र्ज़ चुकाने की रवायत भी खूब
बिसरी यादों के गम भी आ जाएं
आखों में नमी सहज़ मचलने लगे
लाख चाहें कि उसको भुला पाएं
सकून मिल जाता उसके आने से
मुमकिन है वो हर बार चले आएं
सरक ही जाते हैं गालों पर कहीं
यादों के तीर जो चुभन छोड़ जाएं
मुलाकात हो जाये जो उनसे कभी
अधर पर हम मुस्कान भी ले आएं
अश्क भी कहाँ रुकते हैं रोकने से
जितना रोको उतनी जबरन आएं
चलो आज हम तनहा हो जाएं
एक दूसरे के राजों में खो जाएं
ज़माने से अश्कों को देखा नहीं
आज उसके भी रूबरू हो जाएं
Poet: Amrit Pal Singh Gogia
उसका हाथ
ReplyDeleteअपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए.