A-316 पल पल की ख़बर 23.9.17--9.47 PM
पल पल की ख़बर ने पल पल को निहारा है
यहाँ कौन जीता है और कौन कौन हारा है
किसकी मुक़द्दर का तारा धूमिल हो रहा है
किसका हो रहा है इस जगत से किनारा है
यह कौन सा दीपक है जो सकपका रहा है
कभी ज्वलित होता है कभी बुझा जा रहा है
किसको ढूँढ़ता है और किसको बुला रहा है
अब सांसों की गिनती किसको गिना रहा है
मुक़द्दर से चले आए थे बन के सावन तुम
सावन को देखो किस तरह मुस्कुरा रहा है
दिखता नहीं इसको कि अंतिम घड़ी भी है
अंतिम घड़ी का काँटा सबको चिढ़ा रहा है
मुकद्दर का खेल था तुम से मोहब्बत हुई
मोहब्बत का वो हर पल याद आ रहा है
मिलन का दास्ताँ बनी जुदाई का सबूत
हर शख्श को देखो मुझे समझा रहा है
सावन के अंधे को दिखता नहीं है सूखा
देखो वो भी अपना करिश्मा बता रहा है
टुकड़ों में जिसने जिया मुक़द्दर वो सारा
आज हर किसी को करतब दिखा रहा है
बड़ी लम्बी फ़ेहरिस्त है तेरे ज़माने की
हर दाखला किसी का नग़्मा गा रहा है
एक नग़्मे की तान तो मैंने भी छेड़ ली
हर नग़्मा अब आँसूं बन कर आ रहा है
यूँ ही न छेड़ किसी नग़्मे की तान कोई
हर रग का खून थोड़ा सिमटा जा रहा है
रफ़्तार धीमी रख थोड़ी सी और "पाली"
अब इशारा समझ वो मरता जा रहा है
…………………….वो मरता जा रहा है
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
Nice & Touching !!!
ReplyDeleteThank you so much for your appreciation! Bhain ji!
Deleteबहुत ही सुंदर है जिंदगी का सही आकलन।
ReplyDeleteआप का प्रयास सराहनीय है।
आपकी सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आपका दिन मंगलमय हो। गोगिया
DeleteThanks for describing reality of life
ReplyDeleteआपकी सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आपका दिन मंगलमय हो। गोगिया
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