Saturday 30 September 2017

A-318 हम न रहे 25.9.17--5.15 AM

A-318 हम न रहे 25.9.17--5.15 AM

मेरा मुकद्दर था मेरी जिंदगी में तुम आये 
सुहानी जिंदगी का आना जाना तो रहेगा 

हम न भी रहे तो क्या ये ज़माना तो है 
क़िस्से कहानियाँ अफ़साना तो रहेगा 

तुम न भी बुलाओ अपनी आवाज़ देकर 
तेरी इंतज़ार में सही ये दीवाना तो रहेगा 

तुम न मिलो तेरी तदबीर हो सकती है 
मगर तेरे आँसूओं से टकराना तो रहेगा 

हम क़द्रदान रहे और तेरे रहेंगे सारी उम्र 
रूठ भी जाओ याद का आना तो रहेगा 

अपनों से रिश्ते भला कब कहाँ टूटते हैं 
ज़ख्मों का रिसना और आना तो रहेगा 

बहते हुए ज़ख्मों को जब भी देखेंगे हम 
उनके इर्द गिर्द होने का बहाना तो रहेगा 

कहते हो भूल जाऊँ कितने मासूम हो 
तेरी फ़ितरत का ये नज़राना तो रहेगा 

मत कर गिला शिकवा इन हसीनों से 
इनकी फ़ितरत है ये हर्ज़ाना तो रहेगा 

इनके तीरों की दिशा बदल सकती है 
मगर इन तीरों का ठिकाना तो रहेगा 


 Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

2 comments: