A-306 अपना सफ़र 6.8.17-- 10.31 AM
न तुझे पाने की तलब है
न तुझे खोने का सबर है
तेरी मोहब्बत का जिक्र
मुझे तो इसका फ़ख़र है
मैं जानता हूँ मुनासिब नहीं
हर सहरा में ज़िक्र करना
कभी अपने वादों की लड़ी
कभी तुम्हारा फ़िक्र करना
यह उम्मीदों का साया है
हो जाता है फ़िक्र करना
मोहब्बत की फ़ेहरिस्त है
हो जाता है जिक्र करना
तेरी मोहब्बत के आईने में
चाहे मेरी तस्वीर अधूरी है
वक़्त बुरा न आये तुझपर
यह बात मुझसे जरुरी है
मेरी तस्वीर का मुकद्दर भी
गर तेरे आईने में लिखा हो
उस आईने को भी तोड़ देना
चाहे वो तेरी दीप शिखा हो
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
Very good. God bless you.
ReplyDeleteThank you so much Sangha Saheb for you wonderful appreciation!
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