A-305 बड़े बेवफ़ा निकले 1.8.17—4.16 AM
बड़ी बफा जता बड़े अदब के साथ
तुम बेवफ़ा होकर यूँ ही चल निकले
हम तो देख रहे थे तबस्सुम का फूल
मुझे सज़ा देकर यूँ तुम जब निकले
नहीं भूल पायेंगे तेरे इस अदब को
कितने बेबफ़ा हो कैसे चल निकले
पता है नहीं रह पायोगे मेरे बिना तुम
खुद को सज़ा दे कैसे यूँ चल निकले
बहुत भरोसा था मेरे क़दमों पे तुमको
किस निशाँ के पीछे तुम चल निकले
हर ज़िरह मेरी तेरे लिए मुबारक थी
फिर क्यों ख़फ़ा हो तुम चल निकले
भरोसा किसी पर तो आता ही नहीं था
फिर किस सहारे यूँ कैसे चल निकले
बड़े नासमझ हो रिश्तों के मुताल्लिक
कैसे नया रिश्ता ढूँढ कर चल निकले
ठोकरें खाकर अभी अभी तो सम्भले थे
कैसे और ठोकरें खाने को चल निकले
पता है बड़े नाज़ुक मिज़ाज हो तुम भी
ढूँढ लेना कोई जो दग़ाबाज़ कम निकले
कभी तलब हो फिर किसी तरन्नुम में
शायद पुराना ही बफादार बन निकले
Port: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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