A-294 तेरे कहने से 24.6.17—1.16 PM
तेरे कहने से बधिर हो जाती
तो कितने रूप ले लिए होते
हर पल में नयी तस्वीर होती
तुमसे बदले भी ले लिए होते
नहीं मुमकिन तेरी सोहबत में
वर्ना मुकद्दर सिल लिए होते
दूर भी कदापि न जाना पड़ता
अहम् फैसले भी ले लिए होते
तेरे इरादे न किसी काम आये
ख़्याल तो फिर भी चलें आये
तेरे वादों की लड़ी है मुकम्मल
वादे तो किये पर कौन निभाए
हरकतों की हदें पार करना
अब कुछ कुछ समझ आये
प्यार का तुमने नाटक किया
तभी तो तुम समझ नहीं पाये
तेरे हुनर की क्या तारीफ़ करूँ
कैसे लेते हो खुद को छिपाये
सारी सारी रात बाहर रह कर
कितने ही तुमने गुल खिलाये
थोड़ी सी तवज़्ज़ो गर दी होती
खिल जाते फूल बिना मुरझाये
अब तो तुमने बहुत देर कर दी
कुछ फर्क न पड़े अब पछताए
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
Very good.
ReplyDeleteThank you so much Sangha Saheb for your blessing and comments! Gogia
DeleteBhut unndaa likhte ho sirr
ReplyDeleteThanks Akashdeep! for you appreciation!
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